Parmatma Prakash (Gujarati Hindi) (Tamil transliteration). Gatha-72 (Adhikar 1).

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Shri Digambar Jain Swadhyay Mandir Trust, Songadh - 364250
ஶ்ரீ திகஂபர ஜைந ஸ்வாத்யாயமஂதிர ட்ரஸ்ட, ஸோநகட - ௩௬௪௨௫௦
௧௨௬ ]யோகீந்துதேவவிரசித: [ அதிகார-௧ : தோஹா-௭௨
ऐसा तू अपना स्वभाव जान पाँच इन्द्रियोंके विषयको और समस्त विकल्पजालोंको छोड़कर
परमसमाधिमें स्थिर होकर निज आत्माका ही ध्यान कर, यह तात्पयार्थ हुआ ।।७१।।
आगे जो देह छिद जावे, भिद जावे, क्षय हो जावे, तो भी तू भय मत कर, केवल
शुद्ध आत्माका ध्यान कर, ऐसा अभिप्राय मनमें रखकर सूत्र कहते हैं
गाथा७२
अन्वयार्थ :[योगिन् ] हे योगी, [इदं शरीरम् ] यह शरीर [छिद्यतां ] छिद जावे,
दो टुकड़े हो जावे, [भिद्यतां ] अथवा भिद जावे; छेद सहित हो जावे, [क्षयं यातु ] नाशको
प्राप्त होवे, तो भी तू भय मत कर, मनमें खेद मत ला, [निर्मलं आत्मानं ] अपने निर्मल
आत्माका ही [भावय ] ध्यान कर, अर्थात् वीतराग चिदानंद शुद्धस्वभाव तथा भावकर्म,
பரமஸமாதிமாஂ ஸ்தித தஈநே தேநே ஜ (பரம ப்ரஹ்மஸ்வரூப ஆத்மாநே ஜ) பாவ, ஏவோ பாவார்த சே. ௭௧.
ஹவே தேஹ சேதாஈ ஜாஓ, பேதாஈ ஜாஓ தோபண ஶுத்த ஆத்மாநே பாவ ஏவோ அபிப்ராய மநமாஂ
ராகீநே காதாஸூத்ர கஹே சே :
பாவார்த :அஹீஂ ஜே தேஹநா சேதநாதி வ்யாபாரமாஂ பண ராகத்வேஷாதி க்ஷோபநே நஹி கரதோ
शुद्धनिश्चयेन देहस्य न च जीवस्येति मत्वा भयं मा कार्षीः तर्हि किं कुरु जो
अजरामरु बंभु परु सो अप्पाणु मुणेहि यः कश्चिदजरामरो जरामरणरहितब्रह्मशब्दवाच्यः
शुद्धात्मा
कथंभूतः परः सर्वोत्कृष्टस्तमित्थंभूतं परं ब्रह्मस्वभावमात्मानं जानीहि पञ्चेन्द्रिय-
विषयप्रभृतिसमस्तविकल्पजालं मुक्त्वा परमसमाधौ स्थित्वा तमेव भावयेति भावार्थः ।।७१।।
अथ देहे छिद्यमानेऽपि भिद्यमानेऽपि शुद्धात्मानं भावयेत्यभिप्रायं मनसि धृत्वा सूत्रं
प्रतिपादयति
७२) छिज्जउ भिज्जउ जाउ खउ जोइय एहु सरीरु
अप्पा भावहि णिम्मलउ जिं पावहि भव - तीरु ।।७२।।
छिद्यतां भिद्यतां यातु क्षयं योगिन् इदं शरीरम्
आत्मानं भावय निर्मलं येन प्राप्नोषि भवतीरम् ।।७२।।
छिज्जउ भिज्जउ जाउ खउ जोइय एहु सरीरु छिद्यतां वा द्विधा भवतु भिद्यतां वा
छिद्रीभवतु क्षयं वा यातु हे योगिन् इदं शरीरं तथापि त्वं किं कुरु अप्पा भावहि णिम्मलउ
आत्मानं वीतरागचिदानन्दैकस्वभावं भावय किंविशिष्टम् निर्मलं भावकर्मद्रव्यकर्मनोकर्म-