Parmatma Prakash (Gujarati Hindi) (Tamil transliteration). Gatha-73 (Adhikar 1).

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Shri Digambar Jain Swadhyay Mandir Trust, Songadh - 364250
ஶ்ரீ திகஂபர ஜைந ஸ்வாத்யாயமஂதிர ட்ரஸ்ட, ஸோநகட - ௩௬௪௨௫௦
அதிகார-௧ : தோஹா-௭௩ ]பரமாத்மப்ரகாஶ: [ ௧௨௭
द्रव्यकर्म, नोकर्म रहित अपने आत्माका चिंतवन कर, [येन ] जिस परमात्माके ध्यानसे तू
[भवतीरम् ] भवसागरका पार [प्राप्नोषि ] पायेगा
।। जो देहके छेदनादि कार्य होते भी राग-
द्वेषादि विकल्प नहीं करता, निर्विकल्पभावको प्राप्त हुआ शुद्ध आत्माको ध्याता है, वह थोड़े
ही समयमें मोक्षको पाता है
।।७२।।
आगे ऐसा कहते हैं, जो कर्मजनित रागादिभाव और शरीरादि परवस्तु हैं, वे चेतन द्रव्य
न होनेसे निश्चयनयकर जीवसे भिन्न हैं, ऐसा जानो
गाथा७३
अन्वयार्थ :[जीव ] हे जीव, [कर्मणः संबन्धिनः भावाः ] कर्मोंकर जन्य
रागादिक भाव और [अन्यत् ] दूसरा [अचेतनं द्रव्यम् ] शरीरादिक अचेतन पदार्थ [सर्वम् ]
ஜே ஶுத்த ஆத்மாநே பாவே சே தே ஜீவ ஶீக்ர மோக்ஷநே பாமே சே. ௭௨.
ஹவே, துஂ கர்மக்ருத (ராகாதி) பாவோநே அநே அசேதந த்ரவ்யநே நிஶ்சயநயதீ ஜீவதீ ஜுதா ஜாண,
ஏம கஹே சே :
பாவார்த :அஹீஂ மித்யாத்வ, அவிரதி, ப்ரமாத, கஷாய, யோகநீ நிவ்ருத்திநா பரிணாம
रहितम् येन किं भवति जिं पावहि भवतीरु येन परमात्मध्यानेन प्राप्नोषि लभसे त्वं हे जीव
किम् भवतीरं संसारसागरावसानमिति अत्र योऽसौ देहस्य छेदनादिव्यापारेऽपि
रागद्वेषादिक्षोभमकुर्वन् सन् शुद्धात्मानं भावयतीति संपादनादर्वाङ्मोक्षं स गच्छतीति
भावार्थः
।।७२।।
अथ कर्मकृतभावानचेतनं द्रव्यं च निश्चयनयेन जीवाद्भिन्नं जानीहीति कथयति
७३) कम्महँ केरा भावडा अण्णु अचेयणु दव्वु
जीव - सहावहँ भिण्णु जिय णियमिं बुज्झहि सव्वु ।।७३।।
कर्मणः संबन्धिनः भावा अन्यत् अचेतनं द्रव्यम्
जीवस्वभावात् भिन्नं जीव नियमेन बुध्यस्व सर्वम् ।।७३।।
कम्महं केरा भावडा अण्णु अचेयणु दव्वु कर्मसम्बन्धिनो रागादिभावा अन्यत् अचेतनं
देहादिद्रव्यं एतत्पूर्वोक्तं अप्पसहावहं भिण्णु जिय विशुद्धज्ञानदर्शनस्वरूपादात्म-
स्वभावान्निश्चयेन भिन्नं पृथग्भूतं हे जीव
णियमिं बुज्झहि सव्वु नियमेन निश्चयेन बुध्यस्व जानीहि