Parmatma Prakash (Gujarati Hindi) (Tamil transliteration). Gatha-74 (Adhikar 1).

< Previous Page   Next Page >


Page 128 of 565
PDF/HTML Page 142 of 579

background image
Shri Digambar Jain Swadhyay Mandir Trust, Songadh - 364250
ஶ்ரீ திகஂபர ஜைந ஸ்வாத்யாயமஂதிர ட்ரஸ்ட, ஸோநகட - ௩௬௪௨௫௦
௧௨௮ ]யோகீந்துதேவவிரசித: [ அதிகார-௧ : தோஹா-௭௪
इन सबको [नियमेन ] निश्चयसे [जीवस्वभावात् ] जीवके स्वभावसे [भिन्नं ] जुदे [बुध्यस्व ]
जानो, अर्थात् ये सब कर्मके उदयसे उत्पन्न हुए हैं, आत्माका स्वभाव निर्मल ज्ञान दर्शनमयी
है
जो मिथ्यात्व, अविरति, प्रमाद, कषाय, योगोंकी निवृत्तिरूप परिणाम हैं, उस समय शुद्ध
आत्मा ही उपादेय है ।।७३।।
आगे ज्ञानमयी परमात्मासे भिन्न परद्रव्यको छोड़कर तू शुद्धात्माका ध्यान कर, ऐसा
कहते हैं
गाथा७४
अन्वयार्थ :[जीव ] हे जीव [त्वं ] तू [ज्ञानमयं ] ज्ञानमयी [आत्मानं ] आत्माको
[मुक्तवा ] छोड़कर [अन्यः परः भावः ] अन्य जो दूसरे भाव हैं, [तं ] उनको [छंडयित्वा ]
छोड़कर [आत्मस्वभावम् ] अपने शुद्धात्म स्वभावको [भावय ] चितंवन कर
भावार्थ :केवलज्ञानादि अनंतगुणोंकी राशि आत्मासे जुदे जो मिथ्यात्व रागादि
வகதே ஶுத்த ஆத்மா உபாதேய சே. ஏவோ தாத்பர்யார்த சே. ௭௩.
ஹவே, ஜ்ஞாநமய பரமாத்மாதீ பிந்ந ஏவா பரத்ரவ்யநே சோடீநே துஂ ஶுத்த ஆத்மாநே பாவ, ஏம
கஹே சே :
பாவார்த :ஜேமாஂ அநஂத குணோநீ ராஶி அந்தர்பூத சே ஏவா கேவளஜ்ஞாநமய ஆத்மாநே
சோடீநே ஆத்மாதீ ஜுதா அப்யஂதரமாஂ ஜே மித்யாத்வராகாதி அநே பாஹ்யமாஂ தேஹாதிபரபாவோ சே ஏவா
सर्वं समस्तमिति अत्र मिथ्यात्वाविरतिप्रमादकषाययोगनिवृत्तिपरिणामकाले शुद्धात्मोपादेय इति
तात्पर्यार्थः ।।७३।।
अथ ज्ञानमयपरमात्मनः सकाशादन्यत्परद्रव्यं मुक्त्वा शुद्धात्मानं भावयेति निरूपयति
७४) अप्पा मेल्लिवि णाणमउ अण्णु परायउ भाउ
सो छंडेविणु जीव तुहुँ भावहि अप्प-सहाउ ।।७४।।
आत्मानं मुक्त्वा ज्ञानमयं अन्यः परः भावः
तं त्यक्त्वा जीव त्वं भावय आत्मस्वभावम् ।।७४।।
अप्पा मिल्लिवि णाणमउ अण्णु परायउ भाउ आत्मानं मुक्त्वा किंविशिष्टम् ज्ञानमयं
केवलज्ञानान्तर्भूतानन्तगुणराशिं निश्चयात् अन्यो भिन्नोऽभ्यन्तरे मिथ्यात्वरागादिबहिर्विषये
देहादिपरभावः
सो छंडेविणु जीव तुहुं भावहि अप्पसहाउ तं पूर्वोक्तं शुद्धात्मनो विलक्षणं परभावं