Parmatma Prakash (Gujarati Hindi) (Tamil transliteration). Gatha-75 (Adhikar 1).

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Shri Digambar Jain Swadhyay Mandir Trust, Songadh - 364250
ஶ்ரீ திகஂபர ஜைந ஸ்வாத்யாயமஂதிர ட்ரஸ்ட, ஸோநகட - ௩௬௪௨௫௦
அதிகார-௧ : தோஹா-௭௫ ]பரமாத்மப்ரகாஶ: [ ௧௨௯
अंदरके भाव तथा देहादि बाहिरके परभाव ऐसे जो शुद्धात्मासे विलक्षण परभाव हैं, उनको
छोड़कर केवलज्ञानादि अनंतचतुष्टयरूप कार्यसमयसारका साधक जो अभेदरत्नत्रयरूप
कारणसमयसार है, उस रूप परिणत हुए अपने शुद्धात्म स्वभावको चिंतवन कर और उसीको
उपादेय समझ
।।७४।।
आगे निश्चयनयकर आठ कर्म और सब दोषोंसे रहित सम्यग्दर्शन ज्ञान चारित्रमयी
आत्माको तू जान, ऐसा कहते हैं
गाथा७५
अन्वयार्थ :[अष्टभ्यः कर्मभ्यः ] शुद्धनिश्चयनयकर ज्ञानावरणादि आठ कर्मोंसे
[बाह्यं ] रहित [सकलैः दोषैः ] मिथ्यात्व रागादि सब विकारोंसे [त्यक्त म् ] रहित
[दर्शनज्ञानचारित्रमयं ] शुद्धोपयोगके साथ रहनेवाले अपने सम्यग्दर्शन ज्ञान चारित्ररूप
[आत्मानं ] आत्माको [निश्चितम् ] निश्चयकर [भावय ] चिंतवन कर
பூர்வோக்த ஶுத்த ஆத்மாதீ விலக்ஷண பரபாவநே சோடீநே ஹே ஜீவ! துஂ கேவளஜ்ஞாநாதி அநஂதசதுஷ்டயநீ
வ்யக்திரூப கார்யஸமயஸாரநா ஸாதக அபேதரத்நத்ரயாத்மக காரணஸமயஸாரரூபே பரிணத
ஶுத்தாத்மஸ்வபாவநே பாவ.
அஹீஂ, தே ஶுத்தாத்மஸ்வபாவநே உபாதேய ஜாணோ ஏவோ அபிப்ராய சே. ௭௪.
ஹவே, நிஶ்சயநயதீ ஆட கர்ம அநே ஸர்வ தோஷோதீ ரஹித, ஸம்யக்தர்ஶந, ஸம்யக்ஜ்ஞாந அநே
ஸம்யக்சாரித்ர ஸஹித ஆத்மாநே ஜாண, ஏம கஹே சே :
छंडयित्वा त्यक्त्वा हे जीव त्वं भावय कम् स्वशुद्धात्मस्वभावम् किंविशिष्टम्
केवलज्ञानाद्यनन्तचतुष्टयव्यक्ति रूपकार्यसमयसारसाधक मभेदरत्नत्रयात्मककारणसमयसारपरिणतमिति
अत्र तमेवोपादेयं जानीहीत्यभिप्रायः ।।७४।।
अथ निश्चयेनाष्टकर्मसर्वदोषरहितं सम्यग्दर्शनज्ञानचारित्रसहितमात्मानं जानीहीति
कथयति
७५) अट्ठहँ कम्महँ बाहिरउ सयलहँ दोसहँ चत्तु
दंसण - णाण - चरित्तमउ अप्पा भावि णिरुत्तु ।।७५।।
अष्टभ्यः कर्मभ्यः बाह्यं सकलैः दोषैः त्यक्त म्
दर्शनज्ञानचारित्रमयं आत्मानं भावय निश्चितम् ।।७५।।
अट्ठहं कम्महं बाहिरउ सयलहं दोसहं चत्तु अष्टकर्मभ्यो बाह्यं शुद्धनिश्चयेन