Parmatma Prakash (Gujarati Hindi) (Tamil transliteration). Gatha-16 (Adhikar 1).

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Shri Digambar Jain Swadhyay Mandir Trust, Songadh - 364250
ஶ்ரீ திகஂபர ஜைந ஸ்வாத்யாயமஂதிர ட்ரஸ்ட, ஸோநகட - ௩௬௪௨௫௦
ஜ்ஞாநாவரணாதி ஸமஸ்த விபாவரூப பரத்ரவ்ய ஹேய சே ஏவோ பாவார்த சே. ௧௫.
ஏ ப்ரகாரே த்ரண ப்ரகாரநா ஆத்மாநா ப்ரதிபாதக மஹாதிகாரமாஂ ஸஂக்ஷேபதீ த்ரண ப்ரகாரநா
ஆத்மாநா ஸூசநநீ முக்யதாதீ பாஂச ஸூத்ரோ ஸமாப்த தயாஂ.
த்யாரபசீ முக்திகத கேவளஜ்ஞாநாதிநீ வ்யக்திரூப ஸித்தஜீவநா வ்யாக்யாநநீ முக்யதாதீ தஶ
தோஹக ஸூத்ரோநோ ப்ராரஂப கரவாமாஂ ஆவே சே தே ஆ ப்ரமாணே :
லக்ஷநே (மநநே, சித்தநே) அலக்ஷ்யரூபே(பரமாத்மாரூபே) ராகீநே ஹரிஹராதி விஶிஷ்ட புருஷோ ஜேநுஂ
த்யாந கரே சே, தே பரமாத்மாநே ஜாண ஏம கஹே சே :
तु हेयमिति भावार्थः ।।१५।। एवंत्रिविधात्मप्रतिपादकप्रथममहाधिकारमध्ये संक्षेपेण
त्रिविधात्मसूचनमुख्यतया सूत्रपञ्चकं गतम् तदनन्तरं मुक्ति गतकेवलज्ञानादिव्यक्ति रूप-
सिद्धजीवव्याख्यानमुख्यत्वेन दोहकसूत्रदशकं प्रारभ्यते तद्यथा
लक्ष्यमलक्ष्येण धृत्वा हरिहरादिविशिष्टपुरुषा यं ध्यायन्ति तं परमात्मानं जानीहीति
प्रतिपादयति
१६) तिहुयण-वंदिउ सिद्धि-गउ हरि-हर झायहिँ जो जि
लक्खु अलक्खेँ धरिवि थिरु मुणि परमप्पउ सो जि ।।१६।।
त्रिभुवनवन्दितं सिद्धिगतं हरिहरा ध्यायन्ति यमेव
लक्ष्यमलक्ष्येण धृत्वा स्थिरं मन्यस्व परमात्मानं तमेव ।।१६।।
௪௦ ]யோகீந்துதேவவிரசித: [ அதிகார-௧ : தோஹா-௧௬
परमात्मा ही ध्यान करने योग्य है और ज्ञानावरणादिरूप सब परवस्तु त्यागने योग्य है, ऐसा
समझना चाहिए
।।१५।।
इस प्रकार जिसमें तीन तरहके आत्माका कथन है, ऐसे प्रथम महाधिकारमें त्रिविध
आत्माके कथनकी मुख्यतासे तीसरे स्थलमें पाँच दोहा-सूत्र कहे अब मुक्तिको प्राप्त हुए
केवलज्ञानादिरूप सिद्ध परमात्माके व्याख्यानकी मुख्यताकर दश दोहासूत्र कहते हैं
इसमें पाँच दोहोंमें जो हरिहरादिक बड़े पुरुष अपना मन स्थिरकर जिस परमात्माका
ध्यान करते हैं, उसीका तू भी ध्यान कर, यह कहते हैं
गाथा१६
अन्वयार्थ :[हरिहराः ] इन्द्र, नारायण, और रुद्र वगैरेः बडे़ बड़े पुरुष
[त्रिभुवनवंदितं ] तीनलोककर वंदनीक (त्रैलोक्यनाथ) [सिद्धिगतं ] और केवलज्ञानादि
व्यक्तिरूप सिद्धपनेको प्राप्त [यं एव ] जिस परमात्माको ही [ध्यायन्ति ] ध्यावते हैं, [लक्ष्यं ]