Parmatma Prakash (Gujarati Hindi) (Tamil transliteration). Gatha-35 (Adhikar 1).

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Shri Digambar Jain Swadhyay Mandir Trust, Songadh - 364250
ஶ்ரீ திகஂபர ஜைந ஸ்வாத்யாயமஂதிர ட்ரஸ்ட, ஸோநகட - ௩௬௪௨௫௦
तमेवम् किं कृत्वा वीतरागनिर्विकल्पसमाधौ स्थित्वेति अत्र य एव शुद्धात्मानुभूतिरहितदेहे
वसन्नपि देहममत्वपरिणामेन सहितानां हेयः स एव शुद्धात्मा देहममत्वपरिणामरहितानामुपादेय
इति भावार्थः
।।३४।।
अथ यः समभावस्थितानां योगिनां परमानन्दं जनयन् कोऽपि शुद्धात्मा स्फु रति
तमाह
३५) जो सम-भाव-परिट्ठियहँ जोइहँ कोइ फु रेइ
परमाणंदु जणंतु फु डु सो परमप्पु हवेइ ।।३५।।
यः समभावप्रतिष्ठितानां योगिनां कश्चित् स्फु रति
परमानन्दं जनयन् स्फु टं स परमात्मा भवति ।।३५।।
यः कोऽपि परमात्मा जीवितमरणलाभालाभसुखदुःखशत्रुमित्रादिसमभावपरिणत-
स्वरूपको वीतराग निर्विकल्पसमाधिमें तिष्ठकर चिंतवन करो यह आत्मा जड़रूप देहमें
व्यवहारनयकर रहता है, सो देहात्मबुद्धिवालेको नहीं मालूम होती है, वही शुद्धात्मा देहके
ममत्वसे रहित (विवेकी) पुरुषोंके आराधने योग्य है
।।३४।।
आगे जो योगी समभावमें स्थित हैं, उनको परमानन्द उत्पन्न करता हुआ कोई शुद्धात्मा
स्फु रायमान है, उसका स्वरूप कहते हैं
गाथा३५
अन्वयार्थ :[समभावप्रतिष्ठितानां ] समभाव अर्थात् जीवित, मरण, लाभ,
अलाभ, सुख, दुःख, शत्रु, मित्र इत्यादि इन सबमें समभावको परिणत हुए [योगिनां ]
வீதராக நிர்விகல்ப ஸமாதிமாஂ ஸ்தித தஈநே துஂ ஜாண.
அஹீஂ ஶுத்தாத்மாநுபூதிதீ ரஹித தேஹமாஂ ரஹேவா சதாஂ தேஹநா மமத்வபரிணாமவாளாநே
ஜே ஹேய சே தே ஜ ஶுத்தாத்மா, தேஹநா மமத்வபரிணாம விநாநா ஜீவோநே உபாதேய சே ஏவோ பாவார்த
சே. ௩௪.
ஹவே ஸமபாவமாஂ ஸ்தித யோகீஓநே பரமாநஂத உத்பந்ந கரதோ ஜே கோஈ ஶுத்த ஆத்மா
ஸ்புராயமாந தாய சே தேநுஂ ஸ்வரூப கஹே சே :
பாவார்த :ஜீவித-மரண, லாப-அலாப, ஸுக-துஃக, ஶத்ரு-மித்ராதிமாஂ ஸமபாவே
அதிகார-௧ : தோஹா-௩௫ ]பரமாத்மப்ரகாஶ: [ ௬௫