Parmatma Prakash (Gujarati Hindi) (Tamil transliteration). Gatha-38 (Adhikar 1).

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Shri Digambar Jain Swadhyay Mandir Trust, Songadh - 364250
ஶ்ரீ திகஂபர ஜைந ஸ்வாத்யாயமஂதிர ட்ரஸ்ட, ஸோநகட - ௩௬௪௨௫௦
रत्नत्रयभावनारहिता मूढात्मानस्तमात्मानं सकलमिति भणन्ति स्फू टं निश्चितं हे प्रभाकरभट्ट तमेव
परमात्मानं मन्यस्व जानीहीति, वीतरागसदानन्दैकसमाधौ स्थित्वानुभवेत्यर्थः
अत्र स एव
परमात्मा शुद्धात्मसंवित्तिप्रतिपक्षभूतमिथ्यात्वरागादिनिवृत्तिकाले सम्यगुपादेयो भवति तदभावे हेय
इति तात्पर्यार्थः
।।३७।।
अथानन्ताकाशैकनक्षत्रमिव यस्य केवलज्ञाने त्रिभुवनं प्रतिभाति स परमात्मा भवतीति
कथयति
३८) गयणि अणंति वि एक्क उडु जेहउ भुयणु विहाइ
मुक्कहँ जसु पए बिंबियउ सो परमप्पु अणाइ ।।३८।।
गगने अनन्तेऽपि एकमुडु यथा भुवनं विभाति
मुक्त स्य यस्य पदे बिम्बितं स परमात्मा अनादिः ।।३८।।
गगने अनन्तेऽप्येकनक्षत्रं यथा तथा भुवनं जगत् प्रतिभाति क्व प्रतिभाति मुक्त स्य
ज्ञानी जीवोंको उपादेय है, और जिनके मिथ्यात्वरागादिक दूर नहीं हुए उनके उपादेय नहीं,
परवस्तुका ही ग्रहण है
।।३७।।
आगे अनंत आकाशमें एक नक्षत्रकी तरह जिसके केवलज्ञानमें तीनों लोक भासते हैं,
वह परमात्मा है, ऐसा कहते हैं
गाथा३८
अन्वयार्थ :[यथा ] जैसे [अनन्तेऽपि ] अनंत [गगने ] आकाशमें [एकं उडु ]
एक नक्षत्र [‘‘तथा’’ ] उसी तरह [भुवनं ] तीन लोक [यस्य ] जिसके [पदे ] केवलज्ञानमें
[बिम्बितं ] प्रतिबिंबित हुए [विभाति ] दर्पणमें मुखकी तरह भासता है, [सः ] वह [परमात्मा
अनादिः ] परमात्मा अनादि है
भावार्थ :जिसके केवलज्ञानमें एक नक्षत्रकी तरह समस्त लोक-अलोक भासते हैं,
காளே தே ஜ பரமாத்மா ஸம்யக் உபாதேய சே அநே தேநா (மித்யாத்வ-ராகாதிநீ நிவ்ருத்திநா) அபாவமாஂ
ஹேய சே. ஏ தாத்பர்யார்த சே. ௩௭.
ஹவே ஜேநா கேவளஜ்ஞாநமாஂ, அநஂத ஆகாஶமாஂ, ஏக ஜ நக்ஷத்ரநீ ஸமாந த்ரண புவந ப்ரதிபாஸே
சே தே பரமாத்மா சே ஏம கஹே சே :
பாவார்த :அஹீஂ ஜேநா கேவளஜ்ஞாநமாஂ ஏக ஜ நக்ஷத்ரநீ ஸமாந லோக ப்ரதிபாஸே சே, தே
அதிகார-௧ : தோஹா-௩௮ ]பரமாத்மப்ரகாஶ: [ ௬௯