Parmatma Prakash (Gujarati Hindi) (Tamil transliteration). Gatha-37 (Adhikar 1).

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Shri Digambar Jain Swadhyay Mandir Trust, Songadh - 364250
ஶ்ரீ திகஂபர ஜைந ஸ்வாத்யாயமஂதிர ட்ரஸ்ட, ஸோநகட - ௩௬௪௨௫௦
भवति क्वापि तमेव परमात्मानं हे प्रभाकरभट्ट मन्यस्व जानीहि वीतरागस्वसंवेदनज्ञानेन
भावयेत्यर्थः
अत्र सदैव परमात्मा वीतरागनिर्विकल्पसमाधिरतानामुपादेयो भवत्यन्येषां हेय
इति भावार्थः ।।३६।।
यः परमार्थेन देहकर्मरहितोऽपि मूढात्मनां सकल इति प्रतिभातीत्येवं निरूपयति
३७) जा परमत्थेँ णिक्कलु वि कम्म-विभिण्णउ जो जि
मूढा सयलु भणंति फु डु मुणि परमप्पउ सो जि ।।३७।।
यः परमार्थेन निष्कलोऽपि कर्मविभिन्नो य एव
मूढाः सकलं भणन्ति स्फु टं मन्यस्व परमात्मानं तमेव ।।३७।।
यः परमार्थेन निष्कलोऽपि देहरहितोऽपि कर्मविभिन्नोऽपि य एव भेदाभेद-
जान निश्चयकर आत्मा ही परमात्मा है, उसे तू वीतराग स्वसंवेदनज्ञानकर चिंतवन कर सारांश
यह है, कि यह आत्मा सदैव वीतरागनिर्विकल्पसमाधिमें लीन साधुओंको तो प्रिय है, किन्तु
मूढ़ोंको नहीं
।।३६।।
गाथा३७
आगे निश्चयनयकर आत्मा देह और कर्मोंसे रहित है, तो भी मूढ़ों (अज्ञानियों) को
शरीर स्वरूप मालूम होता है, ऐसा कहते हैं
अन्वयार्थ :[यः ] जो आत्मा [परमार्थेन ] निश्चयनयकर [निष्कलोऽपि ] शरीर
रहित है, [कर्मविभिन्नोऽपि ] और कर्मोंसे भी जुदा है, तो भी [मूढाः ] निश्चय व्यवहार
रत्नत्रयकी भावनासे विमुख मूढ़ [सकलं ] शरीरस्वरूप ही [स्फु टं ] प्रगटपनेसे [भणन्ति ]
मानते हैं, सो हे प्रभाकरभट्ट, [तमेव ] उसीको [परमात्मानं ] परमात्मा [मन्यस्व ] जान,
अर्थात् वीतराग सदानंद निर्विकल्पसमाधिमें रहके अनुभव कर
भावार्थ :वही परमात्मा शुद्धात्माके वैरी मिथ्यात्व रागादिकोंके दूर होनेके समय
அந்யோநே ஹேய சே ஏவோ பாவார்த சே. ௩௬.
ஆத்மா பரமார்ததீ தேஹ அநே கர்மதீ ரஹித ஹோவா சதாஂ பண மூட ஆத்மாஓநே ‘‘ஶரீரரூப’’
ப்ரதிபாஸே சே ஏம கஹே சே :
பாவார்த :அஹீஂ ஶுத்த ஆத்மாநா ஸஂவேதநதீ ப்ரதிபக்ஷபூத மித்யாத்வ-ராகாதிநீ நிவ்ருத்திநா
௬௮ ]யோகீந்துதேவவிரசித: [ அதிகார-௧ : தோஹா-௩௭