Parmatma Prakash (Gujarati Hindi) (Tamil transliteration). Gatha-36 (Adhikar 1).

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Shri Digambar Jain Swadhyay Mandir Trust, Songadh - 364250
ஶ்ரீ திகஂபர ஜைந ஸ்வாத்யாயமஂதிர ட்ரஸ்ட, ஸோநகட - ௩௬௪௨௫௦
अथ शुद्धात्मप्रतिपक्षभूतकर्मदेहप्रतिबद्धोऽप्यात्मा निश्चयनयेन सकलो न भवतीति
ज्ञापयति
३६) कम्म-णिबद्धु वि जोइया देहि वसंतु वि जो जि
होइ ण सयलु कया वि फु डु मुणि परमप्पउ सो जि ।।३६।।
कर्मनिबद्धोऽपि योगिन् देहे वसन्नपि य एव
भवति न सकलः कदापि स्फु टं मन्यस्व परमात्मानं तमेव ।।३६।।
कर्मनिबद्धोऽपि हे योगिन् देहे वसन्नपि य एव न भवति सकलः क्वापि काले स्फु टं
मन्यस्व जानीहि परमात्मानं तमेवेति अतो विशेषःपरमात्मभावनाविपक्षभूतैः रागद्वेषमोहैः
समुपार्जितैः कर्मभिरशुद्धनयेन बद्धोऽपि तथैव देहस्थितोऽपि निश्चयनयेन सकलः सदेहो न
आगे शुद्धात्मासे जुदे कर्म और शरीर इन दोनोंकर अनादिकर बँधा हुआ यह आत्मा
है, तो भी निश्चयनयकर शरीरस्वरूप नहीं है, यह कहते हैं
गाथा३६
अन्वयार्थ :[योगिन् ] हे योगी [यः ] जो यह आत्मा [कर्मनिबद्धोऽपि ] यद्यपि
कर्मोंसे बँधा है, [देहे वसन्नपि ] और देहमें रहता भी है, [कदापि ] परंतु कभी [सकलः न
भवति ] देहरूप नहीं होता, [तमेव ] उसीको तू [परमात्मानं ] परमात्मा [स्फु टं ] निश्चयसे
[मन्यस्व ] जान
भावार्थ :परमात्माकी भावनासे विपरीत जो राग, द्वेष, मोह हैं, उनकर यद्यपि
व्यवहारनयसे बँधा है, और देहमें तिष्ठ रहा है, तो भी निश्चयनयसे शरीररूप नहीं है, उससे जुदा
ही है, किसी कालमें भी यह जीव जड़ तो न हुआ, न होगा, उसे हे प्रभाकरभट्ट, परमात्मा
ஹவே ஶுத்த ஆத்மாதீ ப்ரதிபக்ஷபூத கர்ம அநே தேஹதீ ப்ரதிபத்த ஹோவா சதாஂ பண ஆத்மா
நிஶ்சயதீ தேஹரூப ததோ நதீ ஏம கஹே சே :
பாவார்த :அஶுத்தநயதீ பரமாத்மாநீ பாவநாதீ விபக்ஷபூத ராகத்வேஷமோஹதீ உபார்ஜித
கர்மோதீ பஂதாயேலோ ஹோவா சதாஂ பண, தேம ஜ தேஹமாஂ ரஹேவா சதாஂ பண, நிஶ்சயதீ ஜே க்யாரேய
தேஹரூப ததோ நதீ, தே பரமாத்மாநே ஜ ஹே ப்ரபாகரபட்ட! துஂ ஜாண, வீதராக-ஸ்வஸஂவேதநஜ்ஞாநதீ
பாவ ஏவோ அர்த சே.
அத்ரே நிர்விகல்ப ஸமாதிமாஂ ஜேஓ ரத சே தேமநே ஸதாய தே பரமாத்மா உபாதேய சே, பரஂது
அதிகார-௧ : தோஹா-௩௬ ]பரமாத்மப்ரகாஶ: [ ௬௭