Parmatma Prakash (Gujarati Hindi) (Tamil transliteration). Gatha-42 (Adhikar 1).

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Shri Digambar Jain Swadhyay Mandir Trust, Songadh - 364250
ஶ்ரீ திகஂபர ஜைந ஸ்வாத்யாயமஂதிர ட்ரஸ்ட, ஸோநகட - ௩௬௪௨௫௦
भवतीति कथयन्ति
४२) देहि वसंत वि हरि-हर वि जं अज्ज वि ण मुणंति
परम-समाहि-तवेण विणु सो परमप्पु भणंति ।।४२।।
देहे वसन्तमपि हरिहरा अपि यं अद्यापि न जानन्ति
परमसमाधितपसा विना तं परमात्मानं भणन्ति ।।४२।।
परमात्मस्वभावविलक्षणे देहे अनुपचरितासद्भूतव्यवहारनयेन वसन्तमपि हरिहरा अपि
यमद्यापि न जानन्ति केन विना वीतरागनिर्विकल्पनित्यानन्दैकसुखामृतरसास्वाद-
रूपपरमसमाधितपसा तं परमात्मानं भणन्ति वीतरागसर्वज्ञा इति किं च पूर्वभवे कोऽपि जीवो
भेदाभेदरत्नत्रयाराधनां कृत्वा विशिष्टपुण्यबन्धं च कृत्वा पश्चादज्ञानभावेन निदानबन्धं च करोति
तदनन्तरं स्वर्गं गत्वा पुनर्मनुष्यो भूत्वा त्रिखण्डाधिपतिर्वासुदेवो भवति
अन्यः कोऽपि जिनदीक्षां
सरीखे भी जिसे प्रत्यक्ष नहीं जान सकते, वह परमात्मा है, ऐसा कहते हैं
गाथा४२
अन्वयार्थ :[देहे ] परमात्मस्वभावसे भिन्न शरीरमें [वसन्तमपि ]
अनुपचरितअसद्भूतव्यवहारनयकर बसता है, तो भी [यं ] जिसको [हरिहरा अपि ] हरिहर
सरीखे चतुर पुरुष [अद्य अपि ] अबतक भी [न जानन्ति ] नहीं जानते हैं
किसके बिना
[परमसमाधितपसा विना ] वीतरागनिर्विकल्प नित्यानंद अद्वितीय सुखरूप अमृतके रसके
आस्वादरूप परमसमाधिभूत महातपके बिना नहीं जानते, [तं ] उसको [परमात्मानं ] परमात्मा
[भणन्ति ] कहते हैं
भावार्थ :यहाँ किसीका प्रश्न है, कि पूर्वभवमें कोई जीव जिनदीक्षा धारणकर
व्यवहार निश्चयरूप रत्नत्रयकी आराधनाकर महान् पुण्यको उपार्जन करके अज्ञानभावसे
निदानबंध करनेके बाद स्वर्गमें उत्पन्न होता है, पीछे आकर मनुष्य होता है, वही तीन खंडका
स्वामी वासुदेव (हरि) कहलाता है, और कोई जीव इसी भवमें जिनदीक्षा लेकर समाधिके
பண ஜேநே ஜாணதா நதீதே பரமாத்மா சே ஏம கஹே சே :
பாவார்த :அநுபசரித அஸத்பூதவ்யவஹாரநயதீ, பரமாத்மஸ்வபாவதீ, விலக்ஷண ஏவா
தேஹமாஂ ரஹேலோ ஹோவா சதாஂ ஜேநே ஏக (கேவள) நித்யாநஂதரூப ஸுகாம்ருதநா ரஸாஸ்வாதரூப வீதராக
நிர்விகல்ப ஸமாதிரூப, தப விநா ஹரி-ஹர ஜேவா பண ஹஜு ஸுதீ ஜாணதா நதீ, தேநே வீதராகஸர்வஜ்ஞ
தேவோ பரமாத்மா கஹே சே.
௭௪ ]யோகீந்துதேவவிரசித: [ அதிகார-௧ : தோஹா-௪௨