Parmatma Prakash (Gujarati Hindi) (Telugu transliteration). Gatha-6 (Adhikar 1).

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Shri Digambar Jain Swadhyay Mandir Trust, Songadh - 364250
శ్రీ దిగంబర జైన స్వాధ్యాయమందిర ట్రస్ట, సోనగఢ - ౩౬౪౨౫౦
६) केवल-दंसण-णाणमय केवल-सुक्ख-सहाय
जिणवर वंदउँ भत्तियए जेहिँ पयासिय भाव ।।।।
केवलदर्शनज्ञानमयान् केवलसुखस्वभावान्
जिनवरान् वन्दे भक्त्या यैः प्रकाशिता भावाः ।।।।
केवलदर्शनज्ञानमयाः केवलसुखस्वभावा ये तान् जिनवरानहं वन्दे कया भक्त्या यैः
किं कृतम् प्रकाशिता भावा जीवाजीवादिपदार्था इति इतो विशेषः केवल-
ज्ञानाद्यनन्तचतुष्टयस्वरूपपरमात्मतत्त्वसम्यक्श्रद्धानज्ञानानुभूतिरूपाभेदरत्नत्रयात्मकं सुखदुःख-
जीवितमरणलाभालाभशत्रुमित्रसमानभावनाविनाभूतवीतरागनिर्विकल्पसमाधिपूर्वं जिनोपदेशं लब्ध्वा
पश्चादनन्तचतुष्टयस्वरूपा जाता ये
पुनश्च किं कृतम् यैः अनुवादरूपेण जीवादिपदार्थाः
प्रकाशिताः विशेषेण तु कर्माभावे सति केवलज्ञानाद्यनन्तगुणस्वरूपलाभात्मको मोक्षः,
అధికార-౧ : దోహా-౬ ]పరమాత్మప్రకాశ: [ ౨౧
गाथा
अन्वयार्थ :[केवलदर्शनज्ञानमया: ] जो केवलदर्शन और केवल ज्ञानमयी हैं,
[केवलसुखस्वभावा: ] तथा जिनका केवलसुख ही स्वभाव है और [यै: ] जिन्होंने [भावा: ]
जीवादिक सकल पदार्थ [प्रकाशिता
: ] प्रकाशित किये, उनको मैं [भक्त्या ] भक्तिसे [वन्दे ]
नमस्कार करता हूँ
भावार्थ :केवलज्ञानादि अनंतचतुष्टयस्वरूप जो परमात्मतत्त्व है, उसके यथार्थ
श्रद्धान, ज्ञान और अनुभव, इन स्वरूप अभेदरत्नत्रय वह जिनका स्वभाव है, और सुख-दुःख,
जीवित-मरण, लाभ-अलाभ, शत्रु-मित्र, सबमें समान भाव होनेसे उत्पन्न हुई वीतरागनिर्विकल्प
परमसमाधि उसके कहनेवाले जिनराजके उपदेशको पाकर अनंतचतुष्टयरुप हुए, तथा जिन्होंने
यथार्थ जीवादि पदार्थोंका स्वरूप प्रकाशित किया तथा जो कर्मका अभाव है वह वही
భావార్థ :కేవళజ్ఞానాది అనంతచతుష్టయస్వరూప పరమాత్మతత్త్వనాం సమ్యక్శ్రద్ధాన,
సమ్యగ్జ్ఞాన, అనే సమ్యక్అనుభూతిరూప అభేదరత్నత్రయాత్మక ఏవో, సుఖ-దుఃఖ, జీవిత-మరణ, లాభ-
అలాభ, శత్రు-మిత్ర బధా ప్రత్యే సమాన భావనా హోవానీ సాథే అవినాభావీ వీతరాగ నిర్వికల్ప
సమాధిపూర్వక జినోపదేశ పామీనే జేఓ అనంతచతుష్టయస్వరూప థయా ఛే అనే జేఓఏ అనువాదరూపే
జీవాది పదార్థో ప్రకాశ్యా ఛే అనే విశేషపణే కర్మనో అభావ థతాం కేవళజ్ఞానాది అనంతగుణ
స్వరూపనీ ప్రాప్తిరూప జే మోక్ష ఛే అనే శుద్ధ ఆత్మానాం సమ్యక్శ్రద్ధాన, సమ్యగ్జ్ఞాన, అనే