दविरतमनुभाव्यव्याप्तिकल्माषितायाः।
_________________________________________________________________ छे? [सर्वभावान्तरच्छिदे] पोताथी अन्य सर्व जीवा जीव, चराचर पदार्थोने सर्व क्षेत्रकाळ संबंधी, सर्व विशेषणो सहित, एक ज समये जाणनारो छे. आ विशेषणथी, सर्वज्ञनो अभाव माननार मीमांसक आदिनुं निराकरण थयुं. आ प्रकारनां विशेषणो (गुणो) थी शुद्ध आत्माने ज ईष्टदेव सिद्ध करी तेने नमस्कार कर्यो छे.
करे के कोई ईष्टदेवनुं नाम लई नमस्कार केम न कर्यो? तेनुं समाधानः– वास्तविकपणे ईष्टदेवनुं सामान्य स्वरूप सर्वकर्मरहित, सर्वज्ञ, वीतराग, शुद्ध आत्मा ज छे तेथी आ अध्यात्मग्रंथमां समयसार कहेवाथी ईष्टदेव आवी गया. तथा एक ज नाम लेवामां अन्यमतवादीओ मतपक्षनो विवाद करे छे ते सर्वनुं निराकरण, समयसारनां विशेषणो वर्णवीने, कर्युं. वळी अन्यवादीओ पोताना ईष्टदेवनुं नाम ले छे तेमां ईष्ट शब्दनो अर्थ घटतो नथी, बाधाओ आवे छे; अने स्याद्वादी जैनोने तो सर्वज्ञ वीतराग शुद्ध आत्मा ज ईष्ट छे. पछी भले ते ईष्टदेवने परमात्मा कहो, परमज्योति कहो, परमेश्वर, परब्रह्म, शिव, निरंजन, निष्कलंक, अक्षय, अव्यय, शुद्ध, बुद्ध, अविनाशी, अनुपम, अच्छेद्य, अभेद्य, परमपुरुष, निराबाध, सिद्ध, सत्यात्मा, चिदानंद, सर्वज्ञ, वीतराग, अर्हत्, जिन, आप्त, भगवान, समयसार इत्यादि हजारो नामोथी कहो; ते सर्व नामो कथंचित् सत्यार्थ छे. सर्वथा एकांतवादीओने भिन्न नामोमां विरोध छे, स्याद्वादीने कांई विरोध नथी. माटे अर्थ यथार्थ समजवो जोईए.
सौ ज्ञाता लखीने नमुं, समयसार सहु भूप. –१
तथा वचन ते-मय मूर्ति [नित्यम एव] सदाय [प्रकाशताम्] प्रकाशरूप हो. केवी छे ते मूर्ति? [अनन्तधर्मणः प्रत्यगात्मनः तत्त्वं] जे अनंत धर्मवाळो छे अने जे परद्रव्योथी ने परद्रव्यना गुणपर्यायोथी भिन्न तथा परद्रव्यना निमित्तथी थता पोताना