Pravachan Ratnakar-Gujarati (Devanagari transliteration).

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[ समयसार प्रवचन

मम परमविशुद्धिः शुद्धचिन्मात्रमूर्ते–
र्भवतु समयसारव्याख्ययैवानुभूतेः।।
३।।

_________________________________________________________________ विकारोथी कथंचित् भिन्न एकाकार छे एवा आत्माना तत्त्वने, अर्थात् असाधारण- सजातीय विजातीय द्रव्योथी विलक्षण-निजस्वरूपने [पश्यन्ती] ते मूर्ति अवलोकन करे छे -देखे छे.

भावार्थः– अहीं सरस्वतीनी मूर्तिने आशीर्वचनरूप नमस्कार कर्यो छे.

लौकिकमां जे सरस्वतीनी मूर्ति प्रसिद्ध छे ते यथार्थ नथी, तेथी अहीं तेनुं यथार्थ वर्णन कर्युं छे. जे सम्यग्ज्ञान छे ते ज सरस्वतीनी सत्यार्थ मूर्ति छे. तेमां पण संपूर्ण ज्ञान तो केवळज्ञान छे के जेमां सर्व पदार्थो प्रत्यक्ष भासे छे. ते अनंत धर्मो सहित आत्मतत्त्वने प्रत्यक्ष देखे छे तेथी ते सरस्वतीनी मूर्ति छे. तदनुसार जे श्रुतज्ञान छे ते आत्मतत्त्वने परोक्ष देखे छे तेथी ते पण सरस्वतीनी मूर्ति छे. वळी द्रव्यश्रुत वचनरूप छे ते पण तेनी मूर्ति छे, कारण के वचनो द्वारा अनेक धर्मवाळा आत्माने ते बतावे छे आ रीते सर्व पदार्थोना तत्त्वने जणावनारी ज्ञानरूप तथा वचनरूप अनेकांतमयी सरस्वतीनी मूर्ति छे; तेथी सरस्वतीनां नाम ‘वाणी, भारती, शारदा, वाग्देवी’ इत्यादि घणां कहेवामां आवे छे. आ सरस्वतीनी मूर्ति अनंत धर्मोने ‘स्यात्’ -पदथी एक धर्मोमां अविरोधपणे साधे छे तेथी ते सत्यार्थ छे. केटलाक अन्यवादीओ सरस्वतीनी मूर्तिने बीजी रीते स्थापे छे पण ते पदार्थने सत्यार्थ कहेनारी नथी.

कोई प्रश्न करे के आत्माने अनंत धर्मवाळो कह्यो छे तो तेमां अनंत धर्मो कया कया छे? तेनो उत्तरः– वस्तुमां सत्पणुं, वस्तुपणुं, प्रमेयपणुं, प्रदेशपणुं, चेतनपणुं, अचेतनपणुं, मूर्तिकपणुं, अमूर्तिकपणुं, ईत्यादि (धर्म) तो गुण छे; अने ते गुणोनुं त्रणे काळे समय-समयवर्ती परिणमन थवुं ते पर्याय छे- जे अनंत छे. वळी वस्तुमां एकपणुं, अनेकपणुं, नित्यपणुं, अनित्यपणुं, भेदपणुं, अभेदपणुं, शुद्धपणुं, अशुद्धपणुं, आदि अनेक धर्म छे. ते सामान्यरूप धर्मो तो वचनगोचर छे पण बीजा विशेषरूप धर्मो जेओ वचननो विषय नथी एवा पण अनंत धर्मो छे- जे ज्ञानगम्य छे. आत्मा पण वस्तु छे तेथी तेमां पण पोताना अनंत धर्मो छे.

आत्माना अनंत धर्मोमां चेतनपणुं असाधारण धर्म छे, बीजा अचेतन द्रव्योमां नथी. सजातीय जीवद्रव्यो अनंत छे. तेमनामांय जोक के चेतनपणुं छे तोपण सौनुं चेतनपणुं निज स्वरूपे जुदुं जुदुं कह्युं छे; कारण के दरेक द्रव्यने प्रदेशभेद होवाथी कोईनुं कोईमां भळतुं नथी. आ चेतनपणुं पोताना अनंत धर्मोमां व्यापक