Pravachan Ratnakar-Gujarati (Devanagari transliteration).

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भाग-१ ]

छे तेथी तेने आत्मानुं तत्त्व कह्युं छे. तेने आ सरस्वतीनी मूर्ति देखे छे अने देखाडे छे. ए रीते एनाथी सर्व प्राणीओनुं कल्याण थाय छे. माटे ‘सदा प्रकाशरूप रहो’ एवुं आशीर्वादरूप वचन तेने कह्युं छे. २.

हवे (त्रीजा श्लोकमां) टीकाकार आ ग्रंथनुं व्याख्यान करवाना फळने चाहतां प्रतिज्ञा करे छेः-

श्लोकार्थः– श्रीमान अमृतचंद्र आचार्य कहे छे केः- [समयसारव्याख्यया एव] आ समयसार (शुद्धात्मा तथा ग्रंथ) नी व्याख्या (कथनी तथा टीका) थी ज [मम अनुभूतेः] मारी अनुभूतिनी अर्थात् अनुभवनरूप परिणतिनी [परमविशुद्धिः] परम विशुद्धि (समस्त रागादि विभावपरिणति रहित उत्कृष्ट निर्मळता) [भवतु] थाओ. केवी छे ते परिणति? [परपरिणतिहेतोः मोहनाम्नः अनुभावात्] परपरिणतिनुं कारण जे मोह नामनुं कर्म तेना अनुभाव (-उदयरूप विपाक) ने लीधे [अविरतम् अनुभाव्य–व्याप्ति–कल्माषितायाः] जे अनुभाव्य (रागादि परिणामो) नी व्याप्ति छे तेनाथी निरंतर कल्माषित (मेली) छे. अने हुं केवो छुं? [शुद्धचिन्मात्रमूर्तेः] द्रव्यद्रष्टिथी शुद्ध चैतन्यमात्र मूर्ति छुं.

भावार्थः– आचार्य कहे छे के शुद्धद्रव्यार्थिक नयनी द्रष्टिए तो हुं शुद्ध चैतन्यमात्र मूर्ति छुं. परंतु मारी परिणति मोहकर्मना उदयनुं निमित्त पामीने मेली छे- रागादिस्वरूप थई रही छे. तेथी शुद्ध आत्मा नी कथनीरूप जे आ समयसार ग्रंथ छे तेनी टीका करवानुं फळ ए चाहुं छुं के मारी परिणति रागादि रहित थई शुद्ध थाओ, मारा शुद्ध स्वरूपनी प्राप्ति थाओ. बीजुं कांई पण - ख्याति, लाभ, पूजादिक- चाहतो नथी. आ प्रकारे आचार्ये टीका करवानी प्रतिज्ञागर्भित एना फळनी प्रार्थना करी. ३.

प्रवचन नंबर १–२ तारीख २८–११–७प, २९–११–७प

आ समयसार परम अध्यात्मशास्त्र छे. आ अढारमी वखत सभामां वंचाय छे. आ समयसारनो एक शब्द पण सांभळीने यथार्थभाव समजे तो कल्याण थई जाय एवी आ अद्भूत चीज छे. आ ग्रंथमां शुद्धनयनो (शुद्धात्मानो) अधिकार छे. समयसार, शुद्ध-जीव-शुद्ध आत्माने बतावे छे. आखाय समयसारमां शुद्धनय ‘ध्रुव ध्रुव चैतन्य’ ने बतावे छे, जे मात्र सारभूत छे.

‘ॐ परमात्मने नमः’ त्यांथी तो शरू कर्युं छे. श्रीमद् कुंदकुंदाचार्यदेव प्रणीत श्री समयसारजी शास्त्रना जीव-अजीव अधिकारनो प्रारंभ थाय छे. टीकाकार श्री अमृतचंद्रा-