ज्ञायकज्योति छे. आवी शुद्ध सत्तानो अंतरमां स्वीकार थवो ए अलौकिक वात छे. आ हुं एक ज्ञायक शुद्ध छुं एम अंतर-सन्मुख थई जेणे ज्ञायकने जाण्यो-अनुभव्यो तेने मुक्तिनां कहेण मळी गयां एवो आ छठ्ठीनो लेख छे. नियमसारमां शुद्धभाव-अधिकारमां एम कह्युं छे के औदयिक आदि चार भावो त्रिकाळी स्वरूपमां नथी. शुभ-अशुभभाव जे औदयिक भाव छे तेरूप ज्ञायक परिणमतो नथी केमके ते अचेतन छे ए वात तो ठीक. पण क्षयोपशम, क्षायिकभाव तो ज्ञायकने प्रसिद्ध करनारी ज्ञाननी पर्यायो छे, छतां ते भाव वस्तुमां नथी. आवी सूक्ष्म वात छे. त्रिकाळी द्रव्यने जाणनारी जे ज्ञाननी पर्याय ते ज्ञायकमां नथी. गजब वात छे ने! अहा! ईन्द्रो अने गणधरोनी उपस्थितिमां देवाधिदेव त्रिलोकीनाथ जिनेन्द्रदेवनी दिव्यध्वनिमां आ अलौकिक वात आवती हशे त्यारे सांभळनारा केवा नाची ऊठता हशे! नियमसारमां जे औपशमिकादि भावोने अगोचर आत्मा कह्यो ते चार भावो पर्यायस्वरूप छे अने तेथी तेमना आश्रये आत्मा जणाय एवो नथी. ध्रुव, नित्यानंदस्वरूप आत्मा पोताना आश्रये ज जणाय एवो छे. आवो त्रिकाळ शुद्ध आत्मा ज द्रष्टिनो-नजरनो विषय छे. ते सम्यग्द्रष्टिने ज गम्य छे, गोचर छे. एक तरफ गोचर कहे; ने वळी अगोचर पण कहे बन्ने वात यथार्थ छे. ज्यां जे अपेक्षा होय ते बराबर समजावी जोईए. अहाहा...! द्रव्यस्वभाव, पदार्थस्वभाव, तत्त्वस्वभाव के वस्तुस्वभाव जे चैतन्यभाव तेने तेना निज स्वरूपथी जोईए तो पुण्य-पापने उत्पन्न करनार जे समस्त अनेक शुभ-अशुभभाव तेरूप कदीय परिणमतो नथी. अहिंसा, सत्य, दया- दान, व्रत, तप, भक्ति-पूजा ईत्यादि शुभराग ते शुभभाव छे. हिंसा, जूठ चोरी, विषय-वासना ईत्यादि अशुभराग ते अशुभ भाव छे. आ बन्ने भाव जड अने मलिन छे. अहीं कहे छे के निर्मळानंद चैतन्य प्रभु आत्मा कदीय शुभ-अशुभभावपणे जडरूप के मलिनतारूप थयो नथी, तेथी प्रमत्त पण नथी के अप्रमत्त पण नथी. टीकामां प्रमत्त शब्द पहेलो लीधो छे. गाथामां अप्रमत्त-प्रमत्त एम लीधुं छे. ए तो शब्दयोजना छे. गाथा तो पद्यरूप छे ने? एटले पद्यरचनामां अप्रमत्त-प्रमत्त लीधुं छे. आ तो वस्तुना स्वरूपनी वात छे. जैनशासन ए तो वस्तुनुं स्वरूप छे. जैन एटले अंदर जे आ ध्रुव ज्ञायकभाव बिराजे छे जे कदीय रागरूप-जडरूप मलिनतारूप थतो नथी एवा ज्ञायकनी सन्मुख थईने एने ज्ञान अने द्रष्टिमां ले तेने जैन कहे छे. जैन कोई वाडो के वेश नथी, ए तो वस्तुस्वरूप छे. धर्मना बहाने बहारमां हो-हा करे, पुण्यनी क्रियाओ करे, रथ-वरघोडा काढे, पण ए बधो तो राग छे, अने राग ते आत्मा नथी तथा आत्मा