ज्ञायक ज्ञानरूपे परिणमे छे, ते ज्ञेयाकारे परिणमे छे एम छे ज नहीं. आ ज्ञायक रूपी दीवो दया, दान, व्रत, भक्ति, पूजा, ईत्यादि परिणाम जे ज्ञेय छे तेने जाणवाना काळे पण ज्ञानरूपे रहीने ज जाणे छे, अन्य ज्ञेयरूप थतो नथी. ज्ञेयोनुं ज्ञान ते ज्ञाननी अवस्था छे, ज्ञेयनी नथी. ज्ञाननी पर्याय ज्ञेयना जाणनपणे थई माटे तेने ज्ञेयकृत अशुद्धता नथी. साक्षात् तीर्थंकर भगवान सामे होय अने ते जाणवाना आकारे ज्ञाननुं परिणमन थाय तो ते ज्ञेयना कारणे थयुं एम नथी. ते काळे ज्ञाननुं परिणमन स्वतंत्र पोताथी ज छे, परने लईने थयुं नथी. भगवानने जाणवाना काळे पण भगवान जणाया छे एम नथी पण खरेखर तत्संबंधी पोतानुं ज्ञान जणायुं छे आत्मा जाणनार छे ते जाणे छे, ते परने जाणे छे के नहीं? तो कहे छे के परने जाणवाना काळे पण स्वनुं परिणमन-ज्ञाननुं परिणमन पोताथी थयुं छे, परना कारण नहीं. आ शास्त्रना शब्दो जे ज्ञेय छे ए ज्ञेयना आकारे ज्ञान थाय छे पण ते ज्ञेय छे माटे ज्ञाननुं अहीं परिणमन थयुं छे एम त्रणकाळमां नथी. ते वखते ज्ञानना परिणमननी लायकातथी अर्थात् ज्ञेयनुं ज्ञान थवानी पोतानी लायकातथी ज्ञान थयुं छे. ज्ञान ज्ञेयना आकारे परिणमे छे ते ज्ञाननी पर्यायनी पोतानी लायकातथी परिणमे छे, ज्ञेय छे माटे परिणमे छे एम नथी. हवे सुगम भाषामां भावार्थ कहे छे. * भावार्थ उपरनुं प्रवचन * आत्मामां अशुद्धपणुं परद्रव्यना संयोगथी आवे छे. त्यां मूळद्रव्य तो अन्यद्रव्यरूप थतुं ज नथी, मात्र परद्रव्यना निमित्तथी अवस्था मलिन थई जाय छे. जुओ आत्मामां पुण्य-पापनी मलिन दशा ए कर्मना निमित्तथी आवे छे. दया, दान, भक्ति, पूजा ईत्यादि विकल्पो ए राग छे, मलिनता छे अने ए परद्रव्य जे कर्मनो उदय तेना संयोगथी आवे छे. पण तेथी मूळद्रव्य जे ज्ञायकभाव छे ते रागादिरूप मलिन थई जतुं नथी. ए तो निर्मळानंद, चिदानंद भगवान जेवो छे तेवो त्रिकाळ ज्ञायकस्वरूपे रहे छे. द्रव्यद्रष्टिथी तो द्रव्य जे छे ते ज छे, अने पर्यायद्रष्टिथी जोवामां आवे तो मलिन ज देखाय छे. ए रीते आत्मानो स्वभाव ज्ञायकपणुं मात्र छे, अने तेनी अवस्था पुद्गलकर्मना निमित्तथी रागादिरूप मलिन छे. पंडित जयचंद्रजीए बहु सारुं स्पष्टीकरण कर्युं छे के पर्यायद्रष्टिथी जुओ तो ते मलिन ज देखाय छे. अने द्रव्यद्रष्टिथी जोवामां आवे तो ज्ञायकपणुं तो ज्ञायकपणुं ज छे, कांइ जडपणुं थयुं नथी. अहीं द्रव्यद्रष्टिने प्रधान करी कह्युं छे, पर्यायमां जे प्रमत्त-अप्रमत्तना भेद छे ते तो परद्रव्यना संयोगजनित पर्याय छे. अहीं मलिन पर्याय जे प्रमादना भाव ए तो परद्रव्यसंयोगजनित छे पण एना अभावथी जे अप्रमत्तदशा थाय तेने पण परद्रव्यना