अशुद्धता परद्रव्यना संयोगथी थाय छे ए ज फेर छे. विकारी भाव कर्मना संयोगथी थाय छे. ते स्वभाव नथी ए अपेक्षाथी संयोगथी थाय एम कह्युं, पण ए भाव पोतामां पोताथी थाय छे. विकारीभाव छे तो जीवनुं पर्यायसत्त्व अने ते पोताना षट्कारकथी स्वतंत्रपणे पर्यायमां थाय छे. विकारनो कर्ता विकारी पर्याय, विकार ते पोतानुं कर्म, विकार पोते साधन, पोते संप्रदान, पोते अपादान अने पोते आधार. एम विकार एक समयनी पर्यायमां पोताना षट्कारकोथी उत्पन्न थाय छे. परना संयोगथी विकार थाय छे एम कहेवुं ए तो निमित्तनी प्रधानताथी कथन छे, खरेखर परने लईने विकार थतो नथी.
अशुद्धनयने अहीं हेय कह्यो छे, कारणके अशुद्धनयनो विषय संसार छे अने संसारमां आत्मा क्लेश भोगवे छे. अशुद्धनयनो विषय जे संसार छे तेने जीव अनादिथी पोतानो मानी चारगतिमां रखडे छे अने संसारमां क्लेश-दुःख भोगवे छे.
त्यारे कोई एम कहे के अहीं अशुद्ध पर्यायने हेय कही छे पण जे शुद्ध पर्याय छे तेनुं शुं? तो तेनो उत्तर एम छे के नियमसारमां निर्मळ पर्यायने पण हेय कही छे. अहीं तो द्रव्य त्रिकाळी शुद्ध छे तेनी द्रष्टि कराववा अने पर्यायमां जे अशुद्धता छे तेनुं लक्ष छोडाववा अशुद्धताने असत्यार्थ कही हेय कहेवामां आवी छे. जीवने अनादिथी पर्यायद्रष्टि छे अने अशुद्धता अने पर्यायना भेदोनुं लक्ष पण अनादिनुं छे ते अहीं छोडाववानुं प्रयोजन छे.
अहाहा! ध्रुव ज्ञायकभाव भूतार्थ छे, सत्यार्थ छे, निश्चय छे, परमार्थ छे; अने जे पर्यायनी अशुद्धता छे ते अभूतार्थ छे, असत्यार्थ छे, व्यवहार छे, उपचार छे. तेथी अशुद्धनय हेय छे केमके तेनो विषय संसार छे अने संसारमां जीव क्लेश भोगवे छे. चारेय गतिमां मिथ्या श्रद्धान अने रागद्वेषना दावानळमां संतृप्त थई जीव दुःखी- दुःखी थई रह्यो छे. पैसावाळा मोटा शेठीओ होय के राज्यना मालिक मोटा राजा- महाराजा होय ते सौ अज्ञानवश संसारमां महादुःखी छे. लोको एमने अज्ञानथी सुखी कहे, पण खरेखर ते बधा अतिशय दुःखी छे. जीव स्वर्गमां जाय तो त्यां पण तृष्णावश भारे दुःखी छे. नरक-निगोदनां दुःख तो अपरंपार छे, अकथ्य छे.
हवे कहे छे ज्यारे पोते परद्रव्यथी भिन्न थाय त्यारे संसार मटे अने त्यारे क्लेश मटे. ए रीते दुःख मटाडवाने शुद्धनयनो उपदेश प्रधान छे. परद्रव्य अने अशुद्धतानुं लक्ष छोडी, भगवान आत्मा जे आनंदनो नाथ त्रिकाळ ध्रुव ज्ञायक प्रभु छे तेनो आश्रय लेतां संसार कहेतां विकार मटे अने त्यारे क्लेश मटी सुख थाय. नरकना क्षेत्रमां अनाजनो कण नथी, पाणीनुं टीपुं नथी छतां त्यां समकिती सुखी छे. सातमी रौरव नरकना स्थानमां