शुद्धनयनो विषय तो पोतानो ध्रुवस्वभाव ज्ञायक छे, पण एनुं परिणमन निर्मळ थयुं तेने शुद्धनय कह्यो छे. परिणमने ध्रुवने जाण्यो, जाणवानुं कार्य आव्युं तेने शुद्धनय कह्यो. विषय तो ध्रुव छे, पण एने ध्रुव जणायो कयारे? शुद्ध परिणमन थयुं त्यारे ज ध्रुव छे एम जणायुं. एटले एने शुद्धनय कह्यो. पर्यायमां जे अशुद्धता छे ते तो परसंयोगजनित भेद छे, अने जे निर्मळ पर्याय थई तेने अभेदमां गणी लीधी. अशुद्धताने भेदमां गणीने ते अशुद्धद्रव्यार्थिकनयनो विषय छे एम कह्युं. द्रव्य तो त्रिकाळ शुद्ध छे अने द्रव्यनी पर्याय विकारपणे थई छे तेथी तेने अशुद्धद्रव्यार्थिकनयनो विषय कह्यो. आ अशुद्धद्रव्यार्थिक नय पण शुद्धद्रव्यनी द्रष्टिमां पर्यायार्थिक ज छे तेथी व्यवहारनय ज छे एम जाणवुं. पर्याय एम भेद पडे ते अशुद्ध छे, व्यवहार छे. शुद्ध द्रव्यनी द्रष्टिमां पर्यायार्थिकनय छे ते व्यवहारनय ज छे. अहीं आत्मा जे ध्रुववस्तु छे तेने सत्यार्थ, भूतार्थ अने परमार्थ कही अने अशुद्धनयनो विषय जे रागादि एने असत्यार्थ, अभूतार्थ अने उपचार कह्या. द्रव्यना स्वभावनुं प्रयोजन सिद्ध करवा आम कह्युं छे. ध्रुवने ध्येय बनावीने तेनो आश्रय लेतां सम्यग्दर्शनादि प्रगट थाय छे. माटे द्रव्यनी मुख्यतामां पर्यायने गौण करी तेनुं लक्ष छोडाववा तेने असत्यार्थ कह्या छे. अहीं एम पण जाणवुं के जिनमतनुं कथन स्याद्वादरूप छे, तेथी अशुद्धनयने सर्वथा असत्यार्थ न मानवो. पर्यायमां विकार छे ज नहीं, मलिनता छे ज नहीं एम न मानवुं. पर्यायमां विकार छे ते अपेक्षाए तेने सत्यार्थ जाणवुं. विकार छे, पर्याय छे ए अपेक्षाथी सत्यार्थ मानवुं. परंतु सम्यग्दर्शनना ध्येयमां द्रव्य अने पर्याय बन्ने आवी जाय छे एम न समजवुं. वस्तु जे त्रिकाळी ध्रुव द्रव्यस्वभाव छे तेना आश्रये धर्मनी प्राप्ति थाय छे. पर्यायनो आश्रय करवा जाय त्यां विकल्प ऊठे छे, राग उत्पन्न थाय छे. तेथी तेने असत्यार्थ कही त्रिकाळी ध्रुव ज्ञायकनुं अवलंबन लेवा कह्युं छे. पण एम न मानवुं के पर्यायमां शुद्धता-अशुद्धता कांई चीज ज नथी. कारण के स्याद्वाद प्रमाणे शुद्धता अने अशुद्धता बन्ने वस्तुना धर्म छे, अने वस्तुधर्म छे ते वस्तुनुं सत्त्व छे. अशुद्धता ए पण आत्मानी पर्यायनुं सत्त्व छे. सर्वथा असत्य छे, जूठुं छे एम नथी. मार्ग सूक्ष्म अने गंभीर छे, भाई! एने अपेक्षाथी न समजे तो गोटा ऊठे एवुं छे. विकारी अवस्थाने पण जीवे धारी राखी छे. जेम द्रव्य-गुणने धारी राख्या छे तेम अशुद्धताने पण पर्यायमां जीवे धारी राखी छे. अशुद्धता छे ज नहीं एम कहे तो पर्याय ऊडी जाय छे अने अशुद्धतानो आश्रय लेवा जाय तो धर्म थतो नथी. माटे पर्यायमां अशुद्धता छे ते सत्यार्थ छे पण ते आश्रय योग्य नथी तेथी असत्यार्थ छे एम अपेक्षा यथार्थ समजवी.