Pravachan Ratnakar-Gujarati (Devanagari transliteration).

< Previous Page   Next Page >


PDF/HTML Page 109 of 4199

 

१०२ [ समयसार प्रवचन

माटे कहे छे-आत्मा ज्ञायक ज छे; तेमां भेद नथी तेथी प्रमत्त-अप्रमत्त नथी. जुओ स्पष्ट करे छे के चैतन्यरसनो कंद प्रभु आत्मा एक ज्ञायक, ज्ञायक, ज्ञायक ज छे, तेमां पर्याय नथी, प्रमत्त-अप्रमत्त अवस्थाओ नथी. अहाहा...! सम्यग्दर्शननी पर्याय ज्ञायकने विषय करे, पण ए पर्याय ज्ञायकमां नथी. ज्ञायक पर्यायना भेदरूप थतो नथी. जाणनार, जाणनार, जाणनार, ध्रुव, ध्रुव, ध्रुव एवा ज्ञायकमां कोई भेद नथी. कोई कहे के अनेकांत करो ने? के आत्मा ज्ञायक पण छे अने विकारी पण छे. तो अहीं कहे छे के आत्मा वस्तु एकांत ज्ञायक ज छे, अभेद छे तेथी प्रमत्त-अप्रमत्त नथी. अहो! कुंदकुंदाचार्यदेवे जगत समक्ष परम सत्य जाहेर कर्युं छे. हवे चोथा पदनो अर्थ करे छे. ‘ज्ञायक’ एवुं नाम पण तेने ज्ञेयने जाणवाथी आपवामां आवे छे, कारण के ज्ञेयनुं प्रतिबिंब ज्यारे झळके छे त्यारे ज्ञानमां तेवुं ज अनुभवाय छे. रागादि, विकारादि जेवा ज्ञेय छे तेवुं ज अहीं ज्ञानमां जणाय छे. तोपण ज्ञेयकृत अशुद्धता तेने नथी. रागने जाणे माटे रागना कारणे ज्ञान परिणम्युं छे एम नथी. राग छे माटे अहीं तेनुं ज्ञान थयुं एम तेने अशुद्धता नथी. ज्ञाननी पर्याय पोते ज ए रीते जाणवारूप परिणमी छे. जेम अरीसो होय तेमां सामे जेवी चीज कोलसा, श्रीफळ, वगेरे होय तेवी चीज त्यां जणाय. एरूपे अरीसो परिणम्यो छे, ए अरीसानी अवस्था छे. अंदर देखाय ए कोलसा के श्रीफळ नथी. ए तो अरीसानी अवस्था देखाय छे. तेम ज्ञाननी पर्यायमां शरीरादि ज्ञेयो जणाय त्यां ज्ञाननी पर्याय ए पोतानी छे, ए शरीरादि परने लईने थई छे एम नथी; केमके जेवुं ज्ञेय ज्ञानमां प्रतिभासित थयुं तेवो ज्ञायकनो ज अनुभव करतां ज्ञायक ज छे. जाणनारो जाणनारपणे ज रह्यो छे, ज्ञेयपणे थयो ज नथी. ज्ञेय पदार्थनुं जे ज्ञान थयुं ते ज्ञान पोतानुं पोताथी छे, ज्ञेयथी नथी. ‘आ हुं जाणनारो छुं ते हुं ज छुं, अन्य कोई नथी.’ ज्ञेय पदार्थनुं ज्ञान थयुं त्यां जाणनारो ते हुं छु,ं ज्ञेय ते हुं नथी. एवो पोताने पोतानो अभेदरूप अनुभव थयो त्यारे ए जाणवारूप क्रियानो कर्ता पोते ज छे अने जेने जाण्युं ते कर्म पण पोते ज छे. ज्ञाननी पर्याये त्रिकाळी द्रव्यने जाण्युं त्यारे ज्ञेयने पण भेगुं जाण्युं. ए ज्ञेयने नहीं पोतानी पर्यायने पोते जाणी छे. जाणनक्रियानो कर्ता पण पोते अने जाणनकर्म पण पोते. आवो एक ज्ञायकपणामात्र पोते शुद्ध छे. ए ‘शुद्ध’ जणायो पर्यायमां. ए रीते एने शुद्ध कहेवामां आवे छे. जणाया विना शुद्ध कोने कहेवुं? आ शुद्धनयनो विषय छे. त्रिकाळी द्रव्य जे ज्ञायकपणामात्र छे ते शुद्धनयनो विषय छे. अन्य परसंयोगजनित भेदो छे ते बधा भेदरूप अशुद्धद्रव्यार्थिकनयनो विषय छे.