कोने कहेवुं? एनो स्वभाव शुं? अने कया विषयनुं लक्ष छोडी कोनुं लक्ष करवुं? आ बधुं जाण्या विना धर्म न थाय भाई!
द्रष्टिनो विषय शुद्ध छे, अने द्रष्टि पण शुद्ध छे. द्रष्टिए त्रिकाळी शुद्धनी प्रतीति करी. शुद्धमां ‘शुद्ध’ जणायो. आवो वीतरागमार्ग सूक्ष्म छे भाई! आत्मा परमात्मस्वरूप शुद्ध छे. एनी द्रष्टिथी जोईए तो वस्तु शुद्ध छे. पण अहीं तो द्रव्यद्रष्टि शुद्ध छे एम कह्युं छे, द्रव्य शुद्ध छे एम नथी कह्युं. एनो अर्थ ए के द्रष्टि ज्यारे ‘शुद्ध’नी थाय त्यारे वस्तु शुद्ध छे एम तेणे जाण्युं कहेवाय.
अहो! धर्मसभामां एकावतारी इन्द्रो जे सांभळवा आवे छे ते आ अलौकिक वात छे. दया पाळो, व्रत पाळो एवी साधारण वात तो कुंभार पणकरतो होय छे. पण परनी दया कोई पाळी शकतुं नथी. दयानो भाव आवे ते राग छे, अशुद्धता छे. पर्यायमां अशुद्धतानो व्यय थई अने शुद्धता प्रगट थाय ए धर्म छे. शुद्ध चैतन्यस्वभावनी द्रष्टि करतां अशुद्धता गौण थाय छे अने तेनो अभाव थईने शुद्धि प्रगट थतां मुक्ति थाय छे.
वळी कहे छे द्रव्यद्रष्टि शुद्ध छे, अभेद छे, निश्चय छे, भूतार्थ छे, सत्यार्थ छे, परमार्थ छे.
द्रव्यनो स्वभाव अभेद छे. ते उपर द्रष्टि जतां द्रष्टि पण अभेद छे. त्रिकाळी द्रव्य अभेद छे, माटे तेना आश्रये प्रगटेली जे द्रष्टि ते पण अभेद छे एम कहे छे.
अहीं व्यवहार (अशुद्ध पर्याय) सामे द्रष्टि (शुद्ध पर्याय)ने निश्चय कही छे. त्रिकाळी स्वभावनी द्रष्टिथी जोईए तो द्रव्य निश्चय सत् छे, अने एना आश्रये प्रगटेली द्रष्टि पण निश्चय छे.
वस्तु आत्मा त्रिकाळ छे ए भूतार्थ छे. आवा भूतार्थ स्वभावनी द्रष्टि थतां द्रव्यद्रष्टि पण भूतार्थ छे. पर्यायद्रष्टि अभूतार्थ छे, द्रव्यद्रष्टि भूतार्थछे.
त्रिकाळी द्रव्य-वस्तु सत्य छे. आवा सच्चिदानंदस्वरूप आत्मानी द्रष्टि करनारी द्रव्यद्रष्टि पण सत्यार्थ छे.
अगाउ पर्यायनी अशुद्धताने गौण करी उपचार कही हती. अहीं आ छेल्ला बोलमां उपचार सामे द्रव्यद्रष्टि परमार्थ छे एम कह्युं छे. वस्तु-द्रव्य पोते परमार्थ छे. त्रिकाळी ध्रुव आत्मा स्वयं परम पदार्थ छे. एनी द्रष्टि करी ए द्रष्टि पण परमार्थ छे.