Pravachan Ratnakar-Gujarati (Devanagari transliteration).

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१०० [ समयसार प्रवचन

वात छे. द्रव्यमां तो अशुद्धता नथी, पण द्रव्यद्रष्टिमां पण अशुद्धता नथी. पर्याय उपरथी नजर खसेडी लई ज्ञायकस्वभावनी द्रष्टि करे नहीं अने लोको बहारनी धमालमां रोकाई जाय, व्रत करे, जात्रा करे, भक्ति आदि करे पण तेथी शुं वळे? अहीं तो कहे छे के तुं ज्ञायक महाप्रभु छो तेमां द्रष्टि एकाग्र करवी ए भक्ति छे अने ए मोक्षमार्ग छे.

वर्तमान पर्यायमां अशुद्धता छे, वस्तु पोते अशुद्धपणे थई नथी. वस्तु अशुद्ध त्रण काळमां थाय पण नहीं, केमके वस्तुमां विकार थाय एवो कोई गुण नथी. वस्तु जे आत्मा छे तेमां ज्ञान, दर्शन, आनंद, अस्तित्व, वस्तुत्व ईत्यादि अनंत अनंत गुणो छे, पण कोई गुण एवा नथी के वस्तुमां विकार करे. विकार तो पर्यायमां पर निमित्तथी उत्पन्न थाय छे. गुणमां विकार थाय एवो भाव नथी, पण परना लक्षे पर्याय विकारी थाय छे. द्रव्यद्रष्टिमां आ अशुद्धताने गौण करीने व्यवहार, असत्यार्थ, अभूतार्थ, उपचार कही छे. तेमां आशय एम छे के पर्यायनी अशुद्धतानुं लक्ष छोडावी वस्तु जे आत्मा तेनी द्रष्टि कराववी छे. वस्तुस्वभावनी मुख्यतामां पर्याय गौण- अमुख्य छे तेथी तेने व्यवहार कहीने जूठी छे, असत्यार्थ छे एम कहेल छे. असत्यार्थ कहीने उपचार छे एम कह्युं त्यां पर्यायने गौण करीने उपचार कही छे. छे तो खरी, पण तेनुं लक्ष करवा योग्य नथी तेथी द्रव्यद्रष्टिमां तेने गौण करी उपचार कहेल छे.

अहाहा...! सुखनिधान प्रभु आत्मा दुःखरूप केम परिणमे? दुःखपणे तो पर्याय परिणमी छे. ए पर्याय अशुद्ध छे अने परना लक्षे विकारी थई छे. गुण कदीय विकारी थयो नथी. त्रणलोकना नाथ जिनेन्द्रदेवनुं आ कथन छे. जैनदर्शन सिवाय बीजे क्यांय आवी वात नथी.

पर्याय जे अशुद्ध थइ छे ते द्रव्यमां नथी. कोई एम कहे के पर्याय जे शुद्ध थई ते तो द्रव्यमां छे ने? तो ते शुद्ध पर्याय पण द्रव्यमां नथी, पण एनी वात अहीं नथी केमके शुद्ध पर्याय तो द्रव्यनो आश्रय करे छे. अने जे अशुद्धता छे तेने द्रव्यद्रष्टिमां गौण करीने असत्यार्थ कहेल छे. द्रव्यद्रष्टि एटले जे पर्याय निर्मळ थई ए पर्यायनो विषय जे द्रव्य त्रिकाळी छे, ते तरफ ए वळी छे. तेमां अशुद्धता नथी एम कहेवा मागे छे. वळी पर्याय द्रव्य तरफ वळी एमां अशुद्धता गौण छे. घणा प्रकारे कथन आवे त्यां अपेक्षा बराबर समजवी जोईए.

हवे कहे छे-द्रव्यद्रष्टि शुद्ध छे. द्रव्यद्रष्टि एटले वस्तुस्वभावथी जोतां द्रव्य शुद्ध छे अने एनी द्रष्टि करतां जे द्रव्यद्रष्टि प्रगट थई ते पोते पण शुद्ध छे, अने शुद्ध द्रव्य ते एनुं ध्येय छे. बापु! आ तो आत्मकथा छे. जैनमां जन्म्या छतां खबर न मळे के द्रव्य