Pravachan Ratnakar-Gujarati (Devanagari transliteration).

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११६ [ समयसार प्रवचन

अशुद्धताथी छूटवानुं कहो छो तो निर्मळ पर्यायथी छूटवानुं केम कहेता नथी? तो कहे छे के निर्मळ पर्याय तो द्रव्य उपर लक्ष करे छे. (निर्मळ पर्याय, पर्याय उपर लक्ष करती ज नथी.)

पर्याय आ बाजु द्रव्य जे अभेद छे ते तरफ ढळी ते अपेक्षाए ए अभेद कहेवाय. बाकी पर्याय तो द्रव्यथी भिन्न रहे छे. अभेदमां पर्याय कयां छे? पर्याय तो भिन्न रही अभेदनी द्रष्टि करे छे. ते निश्चयद्रष्टि छे. द्रव्यमां पर्याय भेळवी दे तो व्यवहार थई जाय, भेदद्रष्टि थई जाय. पर्याय तो पर्यायमां रहे छे माटे अपेक्षा समजवी जोईए. द्रष्टिफेरे अज्ञानीने फेर लागे पण आ सत्य कहेवाय छे.

वीतराग थया पछी नयनुं आलंबन रहेतुं नथी. त्यारे समयसारना आस्रव अधिकारमां बे जग्याए एम आवे छे के केवळज्ञान थतां साक्षात् शुद्धनय छे ते केवी रीते छे? ए तो द्रव्यनो आश्रय पूर्ण थई गयो ए अपेक्षाए छे. शुद्धनयनो विषय तो ध्रुव त्रिकाळी द्रव्य एक ज छे पण हवे केवळज्ञान थतां द्रव्यनो आश्रय लेवानो रह्यो नहीं ते अपेक्षाए कह्युं छे. खरेखर तो केवळज्ञान कांई शुद्धनयनो विषय नथी, ए तो सद्भूत व्यवहारनयनो विषय छे. केवळज्ञानीने तो नय ज कयां छे? छतां केवळज्ञान थतां शुद्धनय पूर्ण थाय छे एम जे कह्युं छे ए तो शुद्धात्मानुं आलंबन पूर्ण थतां हवे आलंबन लेवानुं रहेतुं नथी ते अपेक्षाए कथन छे. तेथी अहीं कहे छे के वीतराग थया बाद नयनुं आलंबन ज रहेतुं नथी.

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