समयसार गाथा-१९३ ] [ प संवर पोतानी कार्यधुराने बराबर संभाळे छे. कहे छे के-समस्त आगामी-भविष्यनां कर्मने अत्यंतपणे-अतिशयपणे दूरथी ज रोकतो संवर ऊभो छे. आ संवरनी मोटप छे के ते मिथ्यात्वना परिणामने अने नवां कर्मने समीप आववा देतो नथी. अहाहा...! जेमां सम्यग्दर्शन-ज्ञाननी निर्मळ वीतराग परिणति प्रगट थई ते संवर महान् छे, महिमावंत छे. कळशटीकामां एने संवरनी मोटप कही छे. आवी पोतानी मोटपने यथावत् जाळवीने नवां समस्त कर्मने रोकतो संवर ऊभो छे.
अहाहा...! शुद्ध चैतन्यमय भगवान आत्मानी द्रष्टि थतां अर्थात् रागथी भेद करीने शुद्ध चैतन्यनी जागृतदशारूप अनुभव करतां जे संवर प्रगट थयो ते पोतानी कार्यधुराने सावधाना रही संभाळतो ऊभो छे; अने तेथी हवे नवां कर्म आवतां नथी. ‘भरतः दूरात् एव निरुन्धन्’ नवां कर्मने अतिशयपणे दूरथी ज रोकतो संवर ऊभो छे. अहाहा...! संवर प्रगट थतां कर्म-आस्रव अत्यंतपणे रोकाई जाय छे. आ संवरनी मोटप कहेतां महिमा छे. लोकमां ‘आ शेठ छे’ एम महिमा कहे छे ने? तेम आ नवां कर्मने दूरथी ज अतिशयपणे रोकनार संवर छे एम कहीने संवरनो महिमा करे छे. आस्रवने (मिथ्यात्वने) न थवा दे एनुं नाम संवर छे अने ते संवर पोतानी कार्यधुराने बराबर संभाळतो ऊभो छे, प्रगट विद्यमान छे. हवे आवी वात ने आवी भाषा! बापा! मार्ग ज आ छे. रागथी भिन्न पोताना स्वरूपनुं भान नथी तेने संवर ने धर्म धर्म कयांथी थाय? रागथी भिन्न पडीने जेणे अंतरमां भेदज्ञान प्रगट कर्युं, शुद्ध स्वरूपनो आश्रय कर्यो तेने रागनो आस्रव थतो नथी. राग आस्रवे नहि (मिथ्यात्व आवे नहि) ए संवरनुं मुख्य कार्य छे.
अरे! लोको तो राग कर्मने लईने थाय छे एम माने छे. पण भाई! रागभावनुं थवुं ते आत्माना ऊंधा पुरुषार्थथी छे अने तेनुं न थवुं ते आत्माना सवळा पुरुषार्थथी छे; अने ते सवळो पुरुषार्थ कर्मथी ने रागथी भिन्न पडे त्यारे थाय छे. अरे भाई! जो राग कर्मने लईने थतो होय तो कर्म खसे त्यारे ज संवर थाय अने तो जीव रागने टाळे त्यारे संवर थाय एम वात रहे ज नहि. परंतु एम नथी; रागथी भिन्न पडी अंतःपुरुषार्थ करे त्यारे संवर प्रगट थाय छे. आ प्रमाणे आ संवरनी वात करी, हवे निर्जरानी वात ले छे.
संवरपूर्वक निर्जरा होय छे, अर्थात् जेने संवर होय तेने ज निर्जरा होय छे. माटे अज्ञानीने निर्जरा होती नथी. जेने रागना विकल्पथी भिन्न पडतां शुद्धतानी प्राप्ति थई छे तेने संवर होय छे अने तेने निर्जरा होय छे. अहीं कहे छे-
‘तु’ अने ‘प्राग्बद्धं’ जे पूर्वे बंधायेलुं कर्म छे ‘तत् एव दग्धुम्’ तेने बाळवाने ‘अधुना’ हवे ‘निर्जरा व्याजृम्भते’ निर्जरा फेलाय छे.
पूर्वे बंधायेलां जे कर्म छे तेने बाळती निर्जरा फेलाय छे. अहीं बाळवानो