Pravachan Ratnakar-Gujarati (Devanagari transliteration).

< Previous Page   Next Page >


PDF/HTML Page 1919 of 4199

 

] [ प्रवचन रत्नाकर भाग-७ अर्थ ए छे के-पुद्गलनी जे कर्मरूप पर्याय हती ते हवे निर्जरीने अकर्मरूपे थई जाय छे. कर्मनुं अकर्मरूपे थवुं ते कर्म-पुद्गलनुं कार्य पुद्गलमां छे अने केवळज्ञानादि शुद्धता थवी ते चैतन्यनुं कार्य छे. तेथी घातीकर्म नाश थयां माटे केवळज्ञान थयुं वा केवळज्ञान कर्मनुं कार्य छे एम नथी.

जुओ, अहीं निर्जरानी व्याख्या करी छे के पूर्वे (संवर थया पहेलां) बंधायेलां कर्मोनो नाश करीने निर्जरा एटले आत्मानुं शुद्धतारूप परिणमन फेलाय छे एटले वृद्धि पामे छे. अहाहा...! चैतन्यप्रकाशनो पुंज-अनंत चैतन्यप्रकाशनो सागर प्रभु आत्मा छे. तेने, पूर्वना कर्मोनो नाश करीने अर्थात् पर्यायमां रहेली अशुद्धतानो नाश करीने पूर्ण शुद्धतानो प्रकाश-ज्ञानज्योति प्रगट थाय छे. ए ज कहे छे-

जे पूर्वे बंधायेलुं कर्म छे तेने बाळवाने हवे निर्जरा फेलाय छे ‘यतः’ के जेथी ‘ज्ञानज्योतिः’ ज्ञानज्योति ‘अपावृत्तं’ निरावरण थई थकी ‘रागादिभिः न हि मूर्छति’ रागादिभावो वडे मूर्छित थती नथी-सदा अमूर्छित रहे छे.

पहेलां (मिथ्यात्वदशामां) रागमां ते मूर्छित थई हती ते हवे (संवर-निर्जरा प्रगटतां) मूर्छित थती नथी; अरे अस्थिर पण थती नथी, अर्थात् राग-विकल्प थतो नथी एम कहे छे. राग कोने कहेवो? के आत्मामां पर तरफना वलणवाळी वृत्तिनुं उत्थान थवुं ते राग छे. हवे पर तरफना वलणवाळी वृत्ति नाश पामी जतां जे ज्ञान छे ते निश्चल थई अंदर स्वभावमां ठर्युं छे-स्थित थयुं छे. जुओ, आनुं नाम भेदविज्ञान छे, संवर छे अने संवरपूर्वक निर्जरा छे.

पुण्य ने पापना भावथी भिन्न भगवान आत्मानुं अवलंबन लेतां जे शुद्धि प्रगट थई अने जे वडे नवां कर्म आवतां रोकायां ते संवर छे. आवो संवर थया पछी नवां कर्म बंधातां नथी अने जे पूर्वे बंधायां हतां ते कर्मो निर्जरी जाय छे, खरी जाय छे. अने ज्यारे कर्म खरी जाय छे त्यारे ज्ञानज्योति निरावरण थाय छे अर्थात् ज्ञाननुं आवरण दूर थाय छे. भाषा तो व्यवहारथी एम छे के-ज्ञानस्वरूपी चैतन्य-भगवान आत्मानुं आवरण दूर थाय छे. वास्तवमां तो ज्ञान, ज्ञेयपणे (रागादिपणे) परिणमे ते ज एनुं खरुं आवरण छे. ज्ञाननुं विपरीतपणे परिणमवुं ए तेनुं भाव-आवरण छे, अने द्रव्यआवरण (जडकर्म) तो एमां निमित्तमात्र छे. ज्यारे ज्ञान ज्ञानमां स्थित थई ज्ञानभावे परिणमे छे त्यारे भावआवरण दूर थई जाय छे अने त्यारे स्वयं द्रव्य-आवरण (जडकर्म) पण दूर थई जाय छे.

‘ज्ञानज्योति निरावरण थई थकी’ अर्थात् ज्ञाननुं आवरण दूर थवाथी-एम पाठमां वांचीने-सांभळीने अज्ञानी दलील करे छे के-जुओ! आ शुं कह्युं छे अहीं?