Pravachan Ratnakar-Gujarati (Devanagari transliteration).

< Previous Page   Next Page >


PDF/HTML Page 1920 of 4199

 

समयसार गाथा-१९३ ] [ के पूर्वे बंधायेलां कर्मो जे हतां ते ज्यारे निर्जरे छे त्यारे ज्ञाननुं आवरण दूर थाय छे. आवुं स्पष्ट लखेलुं तो छे?

अरे भाई! ए तो निमित्तनी प्रधानताथी करेलुं कथन छे. भाषा टूंकी करवा अने निमित्तनुं ज्ञान कराववा आम बोलाय छे. खरेखर तो परिणमननी अशुद्धता (भाव- आवरण) नाश थईने शुद्धता प्रगट थई छे अने त्यारे निमित्तनी मुख्यताथी ‘आवरण दूर थयुं’ एम कहेवाय छे.

अहाहा...! कहे छे के-ज्ञानज्योति निरावरण थवाथी आत्मा एवो प्रगट थयो के फरीने हवे रागादिभावे परिणमतो नथी. परिणमन निर्मळ थयुं ते थयुं, हवे फरीने रागमय (अज्ञानमय) परिणमन थतुं नथी. आ तो पूर्णतानी वात छे, परंतु अहीं शैली तो एवी छे के अधूरा परिणमनना काळे पण एम ज छे अर्थात् आत्माने जे शुद्ध स्वरूपनी प्राप्तिरूप निर्मळ परिणमन थयुं ते हवे फरीने रागमय परिणमन थवानुं नथी. अहो! आ कळशमां अद्भुत वात छे. आवा निकृष्ट काळमां पण जेने सम्यग्दर्शन-ज्ञान थयुं तेने ते हवे पडी जईने फरीने मिथ्यादर्शन, मिथ्याज्ञान थशे नहि एवा अप्रतिहत पुरुषार्थनी शैलीथी अहीं वात छे. कहे छे के-ज्ञानानंदना स्वभावे जे आत्मा प्रगट थयो ते हवे सदाय एवो ने एवो ज रहे छे, सदा चैतन्यना निर्मळ प्रकाशरूप ज रहे छे, हवे ते रागादिभाव साथे मूर्छित थतो नथी अर्थात् रागना अंधकाररूप परिणमतो नथी.

आम छे छतां रागथी लाभ थाय, धर्म थाय एम माननारा अज्ञानीओ कहे छे के-व्यवहारने हेय न कहेवाय.

तेने कहीए छीए के-भाई! पंडित श्री टोडरमलजी साहेबे ठेकठेकाणे लख्युं छे के रागनुं-रागथी लाभ थवानुं जे तने श्रद्धान छे ते विपरीत होवाथी मिथ्या श्रद्धान छे. राग हो भले, परंतु भाई! तुं श्रद्धान तो एवुं ज कर के-आ पण बंधनुं-दुःखनुं ज कारण छे अने तेथी हेय ज छे. ज्यांसुधी राग छे त्यांसुधी ते हेय ने हेय ज छे अने एक भगवान आत्मा ज उपादेय छे. परमात्मप्रकाशमां पण रागने हेय अने एक आत्माने ज उपादेय कह्यो छे.

भावार्थः– संवर थया पछी नवां कर्म तो बंधातां नथी. जे पूर्वे बंधायां हतां ते कर्मो ज्यारे निर्जरे छे त्यारे ज्ञाननुं आवरण दूर थवाथी अर्थात् अशुद्धतानो नाश थवाथी ज्ञान एवुं थाय छे के फरीने रागादिरूपे परिणमतुं नथी-सदा प्रकाशरूप ज रहे छे.

समयसार गाथा १९३ः मथाळुं

हवे द्रव्यनिर्जरानुं स्वरूप कहे छेः-