Pravachan Ratnakar-Gujarati (Devanagari transliteration).

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] [ प्रवचन रत्नाकर भाग-७

* गाथा १९३ः टीका उपरनुं प्रवचन *

‘विरागीनो उपभोग निर्जरा माटे ज छे.’ पोताना सिवाय पर-रागादिक पदार्थो प्रत्ये ज्ञानीने उदासीनता-वैराग्य होय छे अने ते वैराग्य निर्जरानो हेतु छे. आ गाथामां द्रव्यनिर्जरानी वात छे. ज्ञानीने द्रव्य-कर्म खरी जाय छे ने? तेनी अहीं वात छे. अतीन्द्रिय आनंदस्वरूप भगवान आत्मानी रुचिनुं जेने परिणमन थयुं छे एवा ज्ञानीने इन्द्रियोना भोगोमां रुचि नथी; ज्ञानीने विषयोनी अने विषयोना रागनी रुचि नथी.

तो ज्ञानीने उपभोग-जीवादि विषयोनो उपभोग-निर्जरानो हेतु केवी रीते छे? ज्ञानीने रागनी रुचि नथी; एटले शुं? अहाहा...! जेने निर्मळ निज ज्ञायकभावमां सुखबुद्धि प्रगट थई छे एवा ज्ञानीने रागमां सुखबुद्धि नथी. झीणी वात छे भाई! समकितीने शुभाशुभ राग होय छे पण ए रागनो आदर नथी, ए रागमां प्रेम-रुचि नथी; अंतरमां शुद्ध ज्ञायकमां द्रष्टि भळवाथी तेने रागनुं पोसाण नथी. तथापि नबळाईने लीधे किंचित् राग तेने थाय छे, द्रष्टिनी प्रधानतामां तेने (मिथ्यात्व संबंधी) रागद्वेष नहि थता होवाथी उपभोग नवा बंधनुं निमित्त थता नथी अने द्रव्यकर्म ते काळमां निर्जरी जाय छे तेथी ज्ञानीने उपभोग निर्जरानो हेतु कह्यो छे. शास्त्रमां जे अपेक्षाथी कथन होय तेने यथार्थ ग्रहण करवुं जोईए.

हवे कहे छे-‘रागादिभावोना सद्भावथी मिथ्याद्रष्टिने अचेतन तथा चेतन द्रव्योनो उपभोग बंधनुं निमित्त ज थाय छे;...

जुओ, शुं कहे छे? के मिथ्याद्रष्टिने रागादिभावोनो सद्भाव होय छे. तेने पर पदार्थ प्रत्ये राग छे. एटलुं ज नहि पण तेने रागनो राग-प्रेम छे तेथी तेने राग- द्वेषादि-भावो हयात छे. जेनी द्रष्टि शुद्ध चैतन्य पर नथी एवा पर्यायबुद्धि मिथ्याद्रष्टिनी द्रष्टि राग पर छे, पर्याय पर छे अने तेथी तेने रागादिभावोनो सद्भाव होय छे. रागादिभावोनो सद्भाव होवाथी मिथ्याद्रष्टिने चेतन अने अचेतन द्रव्योनो उपभोग बंधनुं निमित्त ज थाय छे. अचेतन एटले शरीरादि अने चेतन एटले स्त्रीनो आत्मा इत्यादि द्रव्योनो उपभोग रागादिनी हयातीमां बंधनुं ज निमित्त थाय छे. पाठमां ‘चेदणाणमिदराणं’ चेतन, अचेतन एम बेय प्रकार लीधा छे.

अहाहा...! चैतन्यमूर्ति, अतीन्द्रिय आनंदनो रसकंद सच्चिदानंद प्रभु आत्मा अनाकुळ आनंदनुं सत्व छे. हवे आवा निज स्वरूपनी जेने रुचि नथी, तेना प्रति जेनुं वलण-झुकाव नथी ते मिथ्याद्रष्टि छे. तेने पुण्य-पापना भाव अने वर्तमान पर्यायनी रुचि होवाथी रागादिभावोनी हयाती छे. रागादिभावो हयात होतां अज्ञानीने चेतन- अचेतन परद्रव्योनो उपभोग-भोगववाना परिणाम नवा बंधनुं निमित्त थाय छे. ज्यारे