समयसार गाथा-१९३ ] [ ९ ज्ञानीने रागनो रस नथी पण चैतन्यरसनी प्रधानता छे. तेथी रागनी रुचिना परिणमनना अभावे रागद्वेष नहि थता होवाथी पर पदार्थने भोगवतां पण कर्म निर्जरी जाय छे, बंधनुं निमित्त थतुं नथी. आवी वात छे.
जुओ, परनो उपभोग तो कोई खरेखर करी शकतुं ज नथी. अहीं जे ‘चेतन- अचेतन परनो उपभोग’ एम कह्युं छे ए तो बाह्य निमित्तनुं ज्ञान कराववा कह्युं छे. बाकी परद्रव्यनो उपभोग शुं आत्मा करे? (न करे). परद्रव्यनो उपभोग-एम कह्युं एनो अर्थ ए छे के परद्रव्य तरफना लक्षथी जे राग-द्वेषना भाव थाय छे तेनो उपभोग, आवा राग-द्वेषना भावनो उपभोग अज्ञानी मिथ्याद्रष्टि करे छे. अज्ञानीने परद्रव्योमां इष्ट-अनिष्टपणानी बुद्धि छे. तेथी तेने अनुकूळ पदार्थोमां राग अने प्रतिकूळ पदार्थोमां द्वेष थया करे छे. आवा रागद्वेषनी हयातीने लीधे तेने चेतन-अचेतन द्रव्योनो उपभोग नवा बंधनुं निमित्त छे एम कह्युं छे.
हवे कहे छे-‘ते ज (उपभोग), रागादिभावोना अभावथी सम्यग्द्रष्टिने निर्जरानुं निमित्त ज थाय छे.’
जोयुं? जे चेतन-अचेतननो उपभोग अज्ञानीने बंधनुं निमित्त थाय छे ते ज चेतन-अचेतन द्रव्योनो उपभोग ज्ञानीने निर्जरानुं निमित्त ज थाय छे. केम? तो कहे छे के ज्ञानीने रागादिभावोनो अभाव छे. ज्ञानीने मिथ्यात्वसंबंधी रागद्वेषनो अभाव छे. तेने रागनी रुचि नथी अने रागनी रुचिनुं परिणमन नथी तेथी रागादिभावोनो तेने अभाव छे. ते कारणथी सम्यग्द्रष्टिने चेतन-अचेतन द्रव्योनो उपभोग निर्जरानुं निमित्त ज थाय छे, अर्थात् जूनां कर्म उपभोगकाळे खरी जाय छे. अहा! गजब वात छे! अज्ञानीने उपभोगमां नवां कर्म बंधाय छे ज्यारे ज्ञानीने उपभोगमां जूनां कर्म झरी जाय छे. अहो! सम्यग्दर्शननो कोई अचिंत्य अलौकिक महिमा छे! लोकोने तेना परम अद्भुत महिमानी खबर नथी. शुद्ध द्रष्टिना जोरमां-हुं शुद्ध चिदानंदघन वस्तु छुं-एवा एना आश्रयमां ज्ञानीने परद्रव्यना उपभोगमां रागद्वेष थता नथी एवो अलौकिक महिमा सम्यग्दर्शननो छे.
अहीं कह्युं ने के-‘ते ज उपभोग’ एटले के जे उपभोग मिथ्याद्रष्टिने छे ते ज उपभोग रागादिभावोना अभावथी सम्यग्द्रष्टिने निर्जरानुं निमित्त ज छे. समकितीने उपभोग निर्जरानुं निमित्त कह्युं एमां द्रष्टिनुं जोर छे. अहाहा...! ज्ञानीने चैतन्यस्वभावमां स्वामित्व वर्ते छे तेथी तेनो द्रव्येन्द्रियो वडे चेतन-अचेतननो उपभोग निर्जरानुं निमित्त छे. ‘उवभोगमिंदियेहिं’ एम पाठमां छे ने? मतलब के द्रव्येन्द्रियो वडे ज्ञानीने जे उपभोग छे ते निर्जरानुं निमित्त छे.