Pravachan Ratnakar-Gujarati (Devanagari transliteration).

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१० ] [ प्रवचन रत्नाकर भाग-७

परंतु द्रव्येन्द्रियो वडे (जीव) उपभोग तो करी शकातो नथी ने? समाधानः– हा, छे तो एम ज; अहीं तो उपभोगमां इन्द्रियो बाह्य निमित्त छे एम निमित्तनुं ज्ञान कराव्युं छे. समजाणुं कांई...? अज्ञानीने रागद्वेष जीवता छे तेथी तेने इन्द्रियो वडे जे उपभोग छे ते बंधनुं निमित्त छे अने ते ज उपभोग ज्ञानीने निर्जरानुं निमित्त छे केमके तेने रागद्वेषनो अभाव छे. आवी वात छे.

ज्ञानीने रागादिभाव नहि होवाथी उपभोग निर्जरानुं निमित्त ज छे. निमित्त ज छे एम कह्युं एनो अर्थ ए छे के द्रव्यकर्म जे खरी जाय छे ते स्वयं पोताना कारणे खरी जाय छे. ज्ञानीने रागादिनो अभाव वा विरागता छे अने ते विरागता निर्जरानुं निमित्तमात्र छे एम वात छे. हवे कहे छे-

‘आथी (आ कथनथी) द्रव्यनिर्जरानुं स्वरूप कह्युं.’ आ कथन वडे ज्ञानीने जे कर्म रजकणो स्वयं खरी जाय छे तेनी वात करी.

अरे! सम्यग्दर्शन शुं चीज छे एनी लोकोने खबर नथी. लोको तो दया, दान, व्रत, तप, भक्ति इत्यादि क्रिया करीए एटले धर्म थई जाय एम समजे छे. पण ए वडे तो धूळेय धर्म नहि थाय, सांभळने; ए (दया, दान आदि) तो राग छे अने रागनो आश्रय अने रुचि तो मिथ्यादर्शन छे. भाई! मिथ्याद्रष्टिनां बधांय व्रत अने तप भगवानने बाळव्रत अने बाळतप कह्यां छे अने ते बंधनां निमित्त छे. अहीं कहे छे-जे अज्ञानीनो उपभोग छे ते ज उपभोग ज्ञानीने निर्जरानुं निमित्त छे केमके ज्ञानीने रागनी रुचिनो अभाव छे. कांईक राग छे तेथी जरा उपभोगमां जोडाई जाय छे पण ते अहीं गौण छे. ज्ञानी जोडावा छतां जोडातो नथी एम अहीं कहे छे. झीणी वात छे भाई! ज्ञानीने आत्मानी द्रष्टि छे, रागनी द्रष्टि नथी; अज्ञानीने रागनी द्रष्टि छे, आत्मानी द्रष्टि नथी. आत्मानी द्रष्टि अने रागनी द्रष्टि-ए बन्नेमां आसमान-जमीननो फरक छे. अहा! जेनी द्रष्टि निज ज्ञायकस्वभावी शुद्ध आत्मद्रव्य पर पडी छे तेने द्रव्येन्द्रियो वडे चेतन-अचेतनना उपभोगमां रागद्वेषनी हयाती नथी एम कहे छे अने तेथी तेनो उपभोग द्रव्यनिर्जरानुं निमित्त छे एम कह्युं छे.

* गाथा १९३ः भावार्थ उपरनुं प्रवचन *

‘सम्यग्द्रष्टिने ज्ञानी कह्यो छे अने ज्ञानीने रागद्वेषमोहनो अभाव कह्यो छे; माटे सम्यग्द्रष्टि विरागी छे.’

सम्यग्द्रष्टि चोथे गुणस्थाने पण ज्ञानी छे. तेने बीजुं ज्ञान भले थोडुं-ओछुं होय वा न होय पण तेने आत्मज्ञान छे ने? अहाहा...! आत्मानुं ज्ञान थयुं छे माटे ते ज्ञानी छे. ज्ञानीने रागद्वेषमोहनो अभाव कह्यो छे केमके तेने मिथ्यात्व अने अनंतानुबंधीना