Pravachan Ratnakar-Gujarati (Devanagari transliteration).

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समयसार गाथा-१९३ ] [ १७ बंध थतो नथी. तेथी उदयमां आवेलुं कर्म निःसंतान खरी ज जाय छे. हवे आवी (चमत्कारी) वात! पण अभ्यास करे तो समजायने? लोको लौकिक अभ्यासमां- M. A. ने L. L. B नां पूंछडां पाछळ वर्षोनां वर्षो काढे छे अने तत्त्वाभ्यासनी वात आवे एटले कहे के-‘नवराश नथी, मरवानोय वखत नथी.’ भाई! अनादिकाळथी आम ने आम तुं रखडपट्टी करी रह्यो छे. ए लौकिक अभ्यास तो एकलो पापनो अभ्यास छे भगवान! ए तो तने जन्म-मरणना समुद्रमां डूबाडीने ज रहेशे. (आ तत्त्वाभ्यासमां ज तारुं हित छे).

कहे छे-ज्ञानीने जे जडकर्म उदयमां आवे छे ते नवो बंध कर्या विना खरी जाय छे कारण के उदयमां आव्या पछी कर्मनी सत्ता रही शके ज नहि. ‘आ रीते तेने नवो बंध थतो नथी अने उदयमां आवेलुं कर्म निर्जरी गयुं तेथी तेने केवळ निर्जरा ज थई.’

धर्मीनी द्रष्टिनुं जोर शुद्ध ज्ञायक उपर छे. अहाहा...! अनाकुळ शांतिनो रसकंद चिदानंद चैतन्यमूर्ति परमानंदमय प्रभु हुं परमात्मद्रव्य छुं-एवी द्रष्टिना जोरने लीधे, तेने राग आवे छे छतां तेमां केवळ निर्जरा ज थई जाय छे; ज्यारे अज्ञानी पंचमहाव्रत पाळे तोपण तेने मिथ्यात्वनुं जोर होवाथी, आ महाव्रतना परिणाम हुं करुं अने तेथी मने लाभ छे एवी मिथ्या मान्यतानुं जोर होवाथी अनंतो संसार फळतो जाय छे. ज्ञानीने आत्मानी रुचिनुं जोर छे अने अज्ञानीने रागनी रुचिनुं जोर छे; बेमां फरक छे ने? तो ज्ञानीने केवळ निर्जरा थाय छे अने अज्ञानीने केवळ बंध.

एक तो जीव बहारनी डंफासमांथी नवरो न पडे अने एमांय वळी जो संजोगो अनुकूळ होय तो जोई ल्यो पछी-जाणे ‘हुं पहोळो ने शेरी सांकडी.’ पण बापु! ए बधा संजोगो कयां तारा छे? तुं मारा मारा करे छे पण ए बधा मारा एटले तने मारनारा ज छे. भाई! तारी असंयोगी चीजने तें जाणी नथी. तुं चैतन्यस्वरूपी निर्मळानंदनो नाथ छो ने प्रभु! एमां अहंपणुं, एमां स्वामीपणुं धारण कर; तेथी तने समकित थशे. जो समकिती ज्ञानी पुरुष परमां अने रागमां स्वामित्व धारतो नथी तेथी राग आवे छे छतां कर्मथी छूटी जाय छे, तेने केवळ निर्जरा ज थाय छे. तेथी कह्युं के-

‘माटे सम्यग्द्रष्टि विरागीना भोगोपभोगने निर्जरानुं ज निमित्त कहेवामां आव्युं छे. पूर्व कर्म उदयमां आवीने तेनुं द्रव्य खरी गयुं ते द्रव्यनिर्जरा छे.’