समयसार गाथा-१९प ] [ ३३
‘जेम कोई विषवैद्य, बीजाओना मरणनुं कारण जे विष तेने भोगवतो छतो पण, अमोघ (रामबाण) विद्याना सामर्थ्य वडे विषनी शक्ति रोकाई गई होवाथी, मरतो नथी,...’
जुओ, शुं कह्युं? के विष छे ते सामान्यपणे बीजाओना मरणनुं ज कारण छे अर्थात् जे विषनुं सेवन करे ते अवश्य मरणने शरण थाय. परंतु विषवैद्य छे ते विष खाय छतां मरतो नथी. केम? तो कहे छे के तेनी पासे अमोघ विद्यानुं सामर्थ्य छे जे वडे विषनी शक्ति रोकाई-हणाई जाय छे. झेर खाय छतां विषवैद्य मरे नहि केमके तेनी पासे झेरने मारवानी-हणवानी रामबाण-सफळ विद्यानी शक्ति होय छे. आ दाखलो कह्यो; हवे कहे छे-
‘तेम अज्ञानीओने रागादिभावोना सद्भावथी बंधनुं कारण जे पुद्गलकर्मनो उदय तेने ज्ञानी भोगवतो छतो पण, अमोघ ज्ञानना सामर्थ्य द्वारा रागादिभावोनो अभाव होतां (-होईने) कर्मोनी शक्ति रोकाई गई होवाथी, बंधातो नथी.’
जुओ, पुद्गलकर्मनो उदय अज्ञानीओने बंधनुं ज कारण छे केमके अज्ञानीओने रागद्वेषमोहना भावोनो सद्भाव छे. परंतु ज्ञानी कर्मना उदयने भोगवे छतां ते कर्मथी बंधातो नथी. केम? तो कहे छे के जेम वैद्यजन पासे विषनी शक्तिने रोकनारी अमोघ विद्या होय छे तेम ज्ञानीने कर्मोदयनी शक्तिने रोकनारुं अमोघ ज्ञाननुं सामर्थ्य होय छे. ज्ञानीने अंतर्ज्ञान-भेदज्ञान प्रगट थयुं छे ने? ते भेदज्ञानना कारणे तेने रागद्वेष-मोहना भावोनो सद्भाव नथी. ज्ञानीने कर्मोदयने भोगववामां उपादेयबुद्धि के सुखबुद्धि नथी. तेथी ते कर्मोदयने भोगवतो छतो कर्मथी बंधातो नथी.
जेने भोगनो अभिप्राय छे ए तो अज्ञानी छे अने ते भोग भोगवतां नियमथी बंधाय छे केमके तेने रागद्वेषमोहनो सद्भाव छे. अहीं तो जेने भोगनो अभिप्राय नथी एवो ज्ञानी कर्मोदयने भोगवतां, तेने रागद्वेषमोहनो अभाव होवाथी बंधातो नथी -एम कहे छे. भोग भोगवे तोय बंध न थाय एम अहीं सिद्ध नथी करवुं; अहीं तो ज्ञानीना ज्ञाननुं सामर्थ्यविशेष सिद्ध करवुं छे. जो भोग भोगववाथी बंध न थाय एम होय तो तो भोगने छोडीने मुनिपणुं लेवानी शी जरूर? (कांई जरूर न रहे). भाई! भोगववानो भाव तो अशुभभाव छे अने ते बंधनुं ज कारण छे. ज्यां शुभभाव पण बंधनुं कारण छे त्यां अशुभभाव अबंधनुं-निर्जरानुं कारण केम होय?