३४ ] [ प्रवचन रत्नाकर भाग-७
तो अहीं कह्युं छे ने? हा, पण ए तो ज्ञानीने भोगनी रुचि नथी पण अंदर भगवान आत्माना आश्रये उत्पन्न निर्मळ आनंदनी रुचि जामी गई छे तेथी एम कह्युं छे. ज्ञानीने रागनी रुचिनो अभाव अने स्वरूपनी रुचिनो सद्भाव थयो छे अने ते कारणे तेने बंधनी शक्ति रोकाई गई छे. तेथी कह्युं के ज्ञानी कर्मोदयने भोगवतो छतो, रागादिनो अभाव होवाथी कर्मोथी बंधातो नथी. समजाणुं कांई...?
‘जेम वैद्य मंत्र, तंत्र, औषध आदि पोतानी विद्याना सामर्थ्यथी विषनी मरण करवानी शक्तिनो अभाव करे छे तेथी विष खावा छतां तेनुं मरण थतुं नथी, तेम ज्ञानीने ज्ञाननुं सामर्थ्य एवुं छे के कर्मोदयनी बंध करवानी शक्तिनो अभाव करे छे अने तेथी कर्मना उदयने भोगववा छतां ज्ञानीने आगामी कर्मबंध थतो नथी.’
अहाहा...! जुओ, आ केवुं द्रष्टांत आप्युं छे! कहे छे-वैद्य पोताना मंत्र, तंत्र आदि सिद्धिओना सामर्थ्य वडे झेरमां रहेली मरण नीपजाववानी शक्तिनो नाश करे छे, अने तेथी झेर खावा छतां तेनुं मरण थतुं नथी. आथी एम न समजवुं के झेर खावाथी हरकोईने मरण न थाय, आ तो वैद्यने जे शक्तिविशेष प्रगट थई छे एनो प्रभाव अहीं दर्शाव्यो छे. तेम ज्ञानीने अंतर्द्रष्टि वडे एवी ज्ञाननी शक्ति-विशेष प्रगट थई छे के कर्मोदयनी नवीन बंध करवानी शक्तिनो ते अभाव करी दे छे. ज्ञानीने भोग प्रति हेयबुद्धि छे जे वडे ते कर्मोदयनी बंध करवानी शक्तिनो नाश करे छे. तेथी कर्मना उदयने भोगववा छतां ज्ञानीने रागद्वेषमोहनो अभाव होवाथी नवीन कर्मबंध थतो नथी.
त्यारे कोई (अज्ञानीओ) कहे छे-जुओ! ज्ञानीनो भोग निर्जरानो हेतु छे! आवी निरंकुश भोगनी वात! गजब छे ने?
भाई! आ तो भगवान कुंदकुंदाचार्य आम कहे छे. आ कई अपेक्षाथी वात छे ते यथार्थ समजवी जोईए. शुं भोग करवो एवो एनो अर्थ (अभिप्राय) छे? ज्ञानीने भोगमां निर्जरा थाय छे ए तो बीजी अपेक्षाथी वात छे. ज्ञानीने भोगनो विकल्प आवे छे पण भोगमां तेने उपादेयबुद्धि नथी, भोगथी मने हित छे, सुख छे-एवी बुद्धि एने चाली गई छे. धर्मीने जे रागनी रुचि नथी, रागमां एकत्व नथी ते एने प्रगट थयेला ज्ञाननुं-भेदज्ञाननुं सामर्थ्य छे. अने ते ज्ञानना महा आश्चर्यकारी सामर्थ्य वडे ते कर्मोदयनी बंध करवानी शक्तिने हणी नाखे छे. मतलब के ज्ञानीने भोगमां उपादेयपणानी बुद्धि नहि होवाथी भोगनो भाव नवो बंध कर्या