समयसार गाथा-१९प ] [ ३प विना ज झरी जाय छे. ज्यारे अज्ञानी भोगना भावने उपादेयबुद्धिथी वेदे छे तेथी ते अवश्य नवीन कर्मथी बंधाय छे.
भाई! आ तो पकड-पकडमां फेर छे. बिलाडी पोताना बच्चाने पकडे अने उंदरने पकडे-ए बन्नेमां फेर छे. बच्चाने पकडे एमां रक्षानो भाव छे तो मोढुं पोचुं राखीने पडी न जाय तेम पकडे छे अने उंदरने पकडे एमां हिंसानो भाव छे तो भींस दईने त्यां ज मरी जाय एम पकडे छे. तेम अज्ञानीने रागमां उपादेयबुद्धि छे रागमां रुचि छे. रागमां ऊभेलो ते बंध करवानी शक्तिसहित छे, अने तेथी ते कर्मोदयने भोगवतां बंधाय ज छे. ज्यारे अतीन्द्रिय आनंदनो जेने स्वाद आव्यो छे एवा धर्मी जीवने रागना स्वादनी रुचि नथी बल्के तेने ते झेर जेवो लागे छे. ज्ञानीने राग होय छे खरो पण तेने ते हेयबुद्धिए होय छे. ज्ञानी रागने आदरणीय के कर्तव्य मानतो नथी पण जे राग छे तेने हेय माने छे. तेथी ते कर्मोदयने भोगवतां बंधातो नथी. भाई! आ बधो द्रष्टिनो फेर छे. द्रष्टि फेरे बंध ने द्रष्टि फेरे अबंध छे.
जुओ, ब्रह्म नाम निर्मळानंदस्वरूप प्रभु आत्मा; तेना आनंदनो जेने रंग लाग्यो छे तेने ब्रह्मचारी कहीए. आवा ब्रह्मचारीने विषयना रागनो स्वाद झेर जेवो दुःखमय लागे छे. काळो नाग देखीने जेम कोई दूर भागे तेम विकल्प ऊठतां ज्ञानीने थाय छे. आत्माना आनंदना स्वादनी आगळ तेने विषयभोगनो स्वाद फीको-फच लागे छे. ज्यारे अज्ञानीनी द्रष्टिमां फेर छे. ते रागने उपादेय माने छे, भलो- हितकारी माने छे. ते कारणे तेने कषाय शक्ति विद्यमान रहेती होवाथी बंध करवानी शक्ति तेवी ने तेवी ऊभी रहे छे. तेथी अज्ञानी भोग भोगवतां बंधाय ज छे. ज्ञानी, पोताने जे अंतरअनुभवना आनंदनो स्वाद आव्यो छे तेनी साथे रागना स्वादने मींढवे-मेळवे छे अने ते विषयना स्वादने विरस जाणी तत्काल फगावी दे छे अर्थात् तेमां हेयबुद्धिए परिणमे छे अने तेथी कषायशक्तिनो अभाव थतां (भोगना परिणाममां) जे बंध करवानी शक्ति हती ते उडी जाय छे. आ कारणे कर्मोदयने भोगवतां ज्ञानी बंधातो नथी. आवो धर्म! अने आवी वात!
भाई! जेने व्यवहारनी-रागनी रुचि छे तेने परम वीतरागस्वरूप भगवान आत्मानी अरुचि छे, तेने भगवान आत्मा प्रति द्वेष छे. कह्युं छे ने के-‘द्वेष अरोचक भाव’. अनाकुळ आनंदनो कंद प्रभु आत्मा छे. ते जेने रुचतो नथी ने राग रुचे छे तेने आत्मा प्रति अरुचि-द्वेष छे. अज्ञानीने मूळ आत्मानी रुचि नथी, दर्शनशुद्धि ज नथी अने बहारमां व्रत, तप आदि लईने बेसी जाय छे. परंतु भाई! सम्यग्दर्शन विना कषायशक्ति विद्यमान होवाथी ते बधां व्रत, तप फोगट-निरर्थक छे अर्थात् संसारमां रखडवा माटे ज सार्थक छे.