Pravachan Ratnakar-Gujarati (Devanagari transliteration).

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समयसार गाथा-१९प ] [ ३७ कर्मना उदयने भोगववा छतां ज्ञानीने आगामी-नवो कर्मबंध थतो नथी. जुओ, आ भगवाननी, संतोनी वाणी छे.

-आ प्रमाणे सम्यग्ज्ञाननुं सामर्थ्य कह्युं. सम्यग्ज्ञान कहेतां त्रिकाळी ध्रुव भगवान आत्मानुं ज्ञान. जे पर्यायमां परिपूर्ण आखी चीजनुं ज्ञान आवे छे तेने सम्यग्ज्ञान अर्थात् सत्-ज्ञान कहे छे अने आ ज्ञाननुं एवुं परम अद्भुत सामर्थ्य छे के रागने भोगवतो छतो ज्ञानी, तेनां रस-रुचि नहि होवाथी, बंधातो नथी.

[प्रवचन नं. २६प (शेष), २६६ *दिनांक १८-१२-७६ अने १९-१२-७६]