Pravachan Ratnakar-Gujarati (Devanagari transliteration).

< Previous Page   Next Page >


PDF/HTML Page 1953 of 4199

 

४० ] [ प्रवचन रत्नाकर भाग-७

‘तेम ज्ञानी पण, रागादिभावोना अभावथी सर्व द्रव्योना उपभोग प्रत्ये जेने तीव्र वैराग्यभाव प्रवर्त्यो छे एवो वर्ततो थको, विषयोने भोगवतां छतां पण, तीव्र वैराग्यभावना सामर्थ्यने लीधे (कर्मोथी) बंधातो नथी.’

जुओ, जेनुं वीर्य शुद्ध आत्माना आनंदना अनुभवमां उल्लसित थयुं छे ते स्वरूपनो रसियो जीव ज्ञानी छे. ए ज्ञानीने स्वरूपना रसनी अधिकता आगळ रागनो रस ऊडी गयो छे. तेने रागमां रस नथी, उत्साह नथी, होंश नथी. तेथी जेम अरतिभावे मदिरा पीनारने मद चडतो नथी तेम सर्व द्रव्योना उपभोग प्रति जेने तीव्र वैराग्यभाव प्रवर्ते छे तेवो ज्ञानी विषयोने भोगवतां छतां पण बंधातो नथी. ‘रागादिभावोना अभावथी’-एम कह्युं छे ने? मतलब के बीजो किंचित् राग भले होय पण तेने मिथ्यात्व अने अनंतानुबंधी संबंधी राग ने रस तूटी गयो छे. अहाहा...! ज्ञानरस, परम अद्भुत वैराग्यरस जे अनंतकाळमां नहोतो ते ज्ञानीने प्रगट थयो छे. आत्माना आनंदरसनो रसियो ज्ञानी आत्मरसी थयो छे. तेथी तेने रागादिभावोनो अभाव छे, अर्थात् रागना रसनो अभाव छे. रसनी व्याख्या आवे छे ने के-ज्ञान कोई एक ज्ञेयमां तदाकार-एकाकार थई एमां लीन थई जाय एनुं नाम रस छे. (गाथा ३८ भावार्थ). ज्ञानी वीतरागरसनुं ढीम एवा आत्मामां एकाकार थई लीन थयो छे तेथी तेने रागनो रस नथी अने तेथी ते विषयोने भोगवतो छतो बंधातो नथी.

अहीं कहे छे-धर्मीने पण...; अहा! पण धर्मी कोने कहीए? अज्ञानी तो तप करे, उपवास करे, मंदिर बंधावे अने लोकोने शास्त्र संभळावे एटले माने के धर्मी थई गयो. ना हों; एम नथी. परनी साथे धर्मने कांई संबंध नथी. धर्मी तो तेने कहीए जेने स्वरूपना आनंदना रस आगळ रागनो रस उडी गयो छे, रागनो अभाव थयो छे, अहीं कहे छे-धर्मीने रागभावना अभावथी ‘सर्व द्रव्योना’ उपभोग प्रत्ये तीव्र वैराग्य होय छे. वजन अहीं आप्युं छे के सर्व द्रव्योना एटले कोई पण द्रव्य प्रत्ये धर्मीने तीव्र वैराग्य होय छे. अहाहा...! आनंदनो नाथ अमृतरसनो-शांतरसनो सागर प्रभु आत्मा ज्यां उछळ्‌यो त्यां पर्यायमां आनंदरसनो स्वाद आव्यो. ए स्वादनी आगळ इन्द्रना के चक्रवर्तीना भोग पण तुच्छ भासवा लाग्या अर्थात् एवा कोई पण भोग प्रत्ये तेने तीव्र वैराग्य थयो. जुओ, पाठमां ‘सर्व द्रव्यो’ लीधां छे ने! मतलब के स्वद्रव्यमां रस जाग्रत थतां सर्व परद्रव्योना उपभोगनो प्रेम उडी जाय छे. अहाहा...! एक कोर राम अने एक कोर गाम! जेम माता आडो खाटलो राखीने न्हाती होय अने पुत्र त्यां कदाच आवी चढे तो शुं तेनी नजर माता भणी जाय? अरे, ते माताना शरीरनी सामुं पण न जुए. तेम आत्माना आनंदनो स्वाद जेने आव्यो छे ते ज्ञानीने अन्य सर्वद्रव्योमांथी रस उडी गयो छे, एकना रस आगळ अन्य सर्वमांथी रस उडी गयो छे. घणुं आकरुं काम भाई! पण ज्ञानीने ते सहज होय छे. ए ज कहे छे के-