Pravachan Ratnakar-Gujarati (Devanagari transliteration).

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समयसार गाथा-१९६ ] [ ४१

ज्ञानीने-स्वद्रव्यना रसिक जीवने रागादिभावनो रस-सर्वद्रव्योना उपभोगनो रस उडी गयो होय छे अर्थात् सर्वद्रव्यो प्रति तेने तीव्र वैराग्यभाव प्रगट थयो होय छे. धर्मीने राग मरी गयो होय छे तेथी विषयोने भोगवतो छतो तीव्र वैराग्यभावना सामर्थ्यने लीधे ते कर्मोथी बंधातो नथी.

भावार्थः– ए वैराग्यनुं सामर्थ्य छे के ज्ञानी विषयोने सेवतो छतो पण कर्मोथी बंधातो नथी.

हवे आ अर्थनुं अने आगळनी गाथाना अर्थनी सूचनानुं काव्य कहे छेः-

* कळश १३पः श्लोकार्थ उपरनुं प्रवचन *

‘यत्’ कारण के ‘ना’ आ (ज्ञानी) पुरुष ‘विषयसेवने अपि’ विषयोने सेवतो छतो पण ‘ज्ञानवैभव–विरागता–बलात्’ ज्ञानवैभवना अने विरागताना बळथी ‘विषयसेवनस्य स्वं फलं’ विषयसेवनना निजफळने (-रंजित परिणामने) ‘न अश्नुते’ भोगवतो नथी -पामतो नथी.

शुं कहे छे? के आ ज्ञानी पुरुष... , पुरुष एटले आत्मा, भले पछी ते देहथी स्त्री हो के पुरुष. देह कयां आत्मा छे? आ देह कांई आत्मा नथी. आत्मा तो देहथी भिन्न चैतन्यमय चीज छे. आवा आत्मानुं जेने अंतरमां भान थयुं छे ते ज्ञानी पुरुष छे. कोई बहु शास्त्र भण्यो होय माटे ते ज्ञानी छे एम नहि, पण आत्मानुं जेने ज्ञान थयुं छे ते ज्ञानी छे; अंदर ज्ञानानंदस्वभावी पोतानी पूरण चीज छे तेनो अंतःस्पर्श करीने जेणे अतीन्द्रिय आनंदनो अनुभव कर्यो अने पोतानी पूरण चीजनी प्रतीति करी ते ज्ञानी छे, समकिती छे, धर्मी छे. अहीं कहे छे-आवो ज्ञानी पुरुष विषयोने सेवतो छतो ज्ञानवैभवना अने विरागताना बळथी विषयसेवनना निजफळने भोगवतो नथी.

अहाहा...! शुद्ध चैतन्यमूर्ति भगवान आत्मानुं जेने अंदरमां भान थयुं ते ज्ञानीने ज्ञानवैभवनुं बळ होय छे. तेने अंदर शुद्ध चैतन्यनी प्रतीति अने अतीन्द्रिय आनंदनुं वेदन थयां छे ने? ते एनो ज्ञानवैभव छे. वळी तेने सर्व परद्रव्यो प्रति उदासीनताना भावरूप विरागतानुं बळ होय छे. आ प्रमाणे ज्ञानवैभवना अने विरागताना बळथी ज्ञानी विषयोने सेवतो छतो विषयसेवनना निजफळने अर्थात् रंजित परिणामने भोगवतो नथी-पामतो नथी. निजफळ एटले विषयसेवननुं फळ शुं? तो कहे छे-रागथी रंजित परिणाम ते विषयसेवननुं फळ छे. ज्ञानी ते रागना परिणामने भोगवतो नथी केमके ते राग-अशुद्धता प्रति उदासीन छे अने पूर्णानंदस्वरूप प्रभु आत्मानी अस्तिनुं तेने वेदन छे. आवी व्याख्या! अज्ञानीने कठण लागे एटले बूमो पाडे के-नवो धर्म काढयो छे, पण बापु! मार्ग तो अनादिथी आ ज छे.