Pravachan Ratnakar-Gujarati (Devanagari transliteration).

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समयसार गाथा-१९६ ] [ ४३ ए तो उपचार करीने कहेवामां आव्युं छे. तने एम लागे छे के ज्ञानावरणीयथी ज्ञान रोकाई गयुं छे, परंतु बापु! ज्ञानावरणीय तो जड छे अने तेनो उदय पण जड छे. जड आत्माने अडे नहि अने आत्मा-जडने अडे नहि तो पछी जड आत्माने शुं करे? ज्ञानने केम रोके? भाई! खरी वात तो एम छे के ज्यारे ज्ञाननी हीणी दशा स्वयं पोताना भावकर्मथी थाय छे त्यारे ज्ञानावरणीयने निमित्त कहेवामां आवे छे.

प्रश्नः– जो निमित्तथी कांई पण न थाय तो भगवानना दर्शनथी सारा-उज्ज्वळ परिणाम थाय छे ए वात उडी जाय छे.

उत्तरः– भाई! भगवानना दर्शनथी सारा-उज्ज्वळ परिणाम थाय छे एम छे ज नहि. ए तो जेने शुभ परिणाम थाय छे तेने निमित्तथी-भगवानना दर्शनथी थया एम (उपचारथी) कहेवाय छे. अन्यथा भगवाननी प्रतिमा पर तो ईयळ खाईने चकली पण बेसे छे. जो प्रतिमाजीथी शुभ परिणाम थता होय तो ते चकलीने पण थवा जोईए; पण एम छे नहि.

अहीं वात एम छे के-आत्माना आनंदना रसनो रसिक जे थयो ते ज्ञानीने ज्ञानवैभवनुं अने विरागतानुं पीठबळ छे. तेने हवे अन्यत्र कयांय रस उपजतो नथी. इन्द्रना के चक्रवर्तीना भोगमां पण ते रसविहीन उदासीन थई गयो छे. ‘तत्’ तेथी ‘असौ’ आ (पुरुष) ‘सेवकः अपि असेवकः’ सेवक छतां असेवक छे. शुद्ध चैतन्यना रसथी जे भींजायो ते त्यांथी खसतो नथी. तेथी आवो ज्ञानी पुरुष सेवतो छतां नहि सेवतो असेवक छे, केमके सेवननुं फळ न आव्युं.

त्यारे कोई वळी कहे छे-ज्ञानी परनुं करे तो छे पण ते अनासक्तिभावे करे छे. समाधानः– भाई! परनुं करवुं ए वात तो जैनशासनमां छे ज नहि पछी अनासकितथी करे छे ए वात कयां रही? ज्ञानी अनासकितभावे राग करे छे एम कहेवुं पण मिथ्या छे केमके ज्ञानीने रागनो रस ज नथी, तेने रागनुं स्वामित्व ज नथी. अहीं तो कहे छे के ज्ञानी रागने करतो ज नथी. परिणाममां कंईक नबळाई छे तो राग थई जाय छे पण तेनुं कर्तृत्व ते स्वीकारतो नथी. ए तो परिणमनमां जे राग थाय छे तेने (भिन्न) मात्र जाणे छे. भारे वातु! बापु! मारगडा वीतरागना साव जुदा छे.

भाई! आ जन्म-मरणनो अंत करवानो अवसर आव्यो छे. आ अवसरमां पण जो आ नहि समजे तो कयारे समजीश? जो ने, नाना नाना बाळकोने पण हार्टफेल थई जाय छे! एक आठ वर्षनो छोकरो निशाळनां पगथियां चडतो हतो त्यां तेने हार्टफेल थई गयुं. देह तो आवो छे बापु! ए तो जोतजोतामां छूटी जशे. पछी तारे कयां जावुं? गंभीर प्रश्न छे भाई! जो आनी समजण ना करी तो कयांय भवसमुद्रमां निगोदादिमां खोवाई जईश.