६६ ] [ प्रवचन रत्नाकर भाग-७
अहीं कह्युं के-खरेखर राग नामनुं पुद्गलकर्म छे तेना उदयना विपाकथी उत्पन्न थयेलो आ रागरूप भाव छे. गाथा ७प मां पण ए ज कह्युं छे के-राग-द्वेष, पुण्य- पापना अंतरंगमां जे भाव थाय छे ते पुद्गलपरिणाम-पुद्गलनुं कार्य छे. आ कई अपेक्षाए वात छे? के रागादि जीवनो स्वभाव नथी, स्वभावथी ते चीज भिन्न छे एम बताववा तेने पुद्गलनुं कर्मजन्य परिणाम छे एम कह्युं छे. ज्यारे वास्तविक पर्यायनी स्थितिनुं स्वरूप कहे त्यारे रागद्वेष आदि जेटलो विकार थाय छे ते, षट्कारकरूप परिणमन जीवथी जीवनुं जीवमां छे. आम बेय रीते शास्त्रमां कथन आवे छे तेने जे ते अपेक्षाथी यथार्थ समजवुं जोईए.
आ निर्जरा अधिकार छे. धर्मी जीवनी द्रष्टि त्रिकाळी चैतन्यस्वभावमात्र निजवस्तु उपर होय छे. तेथी ते स्वभावद्रष्टिवंतने, जे रागादि भाव थाय छे तेनुं तेने स्वामीपणुं नहि होवाथी, ते भाव खरी जाय छे, निर्जरी जाय छे. ज्ञानीने तो निर्जरा ज छे ने? कारण के ते रागादि भावनो स्वामी नहि होतो थको तेने पुद्गलना कार्यपणे जाणे छे, अने स्वभावना आश्रये रागादिथी निवर्ते छे.
प्रश्नः– आमां केटकेटली अपेक्षाओ बधी याद राखवी? आप सवारे प्रवचनमां कहो के राग-विकार ताराथी थाय छे, तारो छे; वळी बपोरना प्रवचनमां कहो के रागादि पुद्गलनुं कार्य छे, तारुं नहि. तो आमां अमारे समजवुं शुं?
समाधानः– भाई! ज्यां जे अपेक्षा होय ते यथार्थ समजवी जोईए. जुओ, राग खरेखर तो एक समयनी जीवनी पर्यायमां पोताथी स्वतंत्र थाय छे. पोतानो ते दोष छे. पण ते दोष छे, स्वभाव नथी-एम बताववा स्वभावनी द्रष्टि कराववा ते पुद्गलनो छे एम कह्युं छे. जेने स्वभावनी द्रष्टि थई छे ते धर्मात्मा रागने पोतानाथी भिन्न पुद्गलनुं कार्य मानीने स्वभावना अवलंबने छोडी दे छे.
प्रश्नः– निमित्तथी (विकार) थाय एटले शुं? समाधानः– निमित्तथी थाय एटले निमित्तना लक्षे पोताथी पोतानामां थाय. पंचास्तिकायनी ६२ मी गाथामां तो चोख्खुं कह्युं छे के जे राग-द्वेष-मोहना विकारी भाव थाय छे ते एक समयनी पर्यायमां षट्कारकनुं स्वतंत्र परिणमन छे. ते ते पर्याय ते रागने करे छे, ते ते पर्यायनुं राग कर्म छे, ते पर्याय रागनुं साधन छे, ते पर्याय रागरूप थईने रागने ले छे अर्थात् राखे छे, ते पर्यायथी राग थाय छे अने ते पर्यायना आधारे राग थाय छे. त्यां पंचास्तिकायमां राग-विकारनी अवस्था जीवनी (पर्यायनी) सत्तामां जीवने लईने थाय छे तेम सिद्ध करवुं छे. राग पोतानी पर्यायमां थयेलो पोतानो छे एम त्यां कहेवुं छे. वळी जेम रागनी पर्याय निरपेक्ष छे तेम वीतरागी