Pravachan Ratnakar-Gujarati (Devanagari transliteration).

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६८ ] [ प्रवचन रत्नाकर भाग-७ पोतानो अपराध छे. विकारनी पर्याय ज विकारने करे छे, ते नथी कर्मथी थयो के नथी द्रव्य-गुणथी थयो. माटे विकार थाय छे एमां कर्मनुं तो कांई कार्य नथी.

पण ए तो अभिन्ननी (अभिन्न कारकोनी) वात छे? हा, पण अभिन्न एटले शुं? पोताथी विकार थयो छे एनुं ज नाम अभिन्न छे; ते कांई भिन्न वस्तुथी (कर्मथी) थयो छे एम छे नहि. ज्यारे अहीं अपेक्षा बीजी छे. अहीं तो पर्यायमां जे विकार थाय छे ते चिदानंदघनस्वरूप भगवान आत्मानो स्वभाव नथी. त्रिकाळी चीज जे सच्चिदानंदमय अनाकुळ आनंदस्वरूप, अकषायस्वरूप प्रभु आत्मा छे तेमां राग नथी. तेनी द्रष्टिमां राग पृथक् रही जाय छे तेथी तेने पुद्गलनुं कार्य गणी तेना उपरनी द्रष्टि छोडावी छे अने स्वभावनी द्रष्टि करावी छे.

अहाहा...! भाषा तो जुओ! ‘तेना उदयना विपाकथी’... कोना विपाकथी? के पुद्गलकर्म जे जड छे तेना उदयना विपाकथी उत्पन्न थयेलो आ रागरूप भाव छे. ते (- राग) स्वभाव नथी ते बताववा आम कह्युं छे. एक समयनी विकृत अवस्था स्वभाव केम होय? जोके पर्यायबुद्धिवाळाने राग पोतानो स्वभाव भासे छे. परंतु अहीं तो पर्यायबुद्धिने उडावी दीधी छे ने? (केमके आ तो निर्जरावाळानी वात छे). तेथी पर्यायबुद्धि उडावीने कह्युं छे के-राग द्रव्यमां नथी. अहाहा...! ज्यां द्रष्टि थंभी छे त्यां- वस्तु अने वस्तुनी शक्ति-गुणोमां राग छे ज नहि. तेथी रागने पुद्गलनो कह्यो छे. भाई! आ कोईने न बेसे वा विपरीत बेसे तोपण तेनी साथे कोई विरोध न होय. अमने तो ‘सत्त्वेषु मैत्री’ छे. अहाहा...! बधा ज भगवान आत्मा छे. माटे कोईना प्रति विरोध करवानो न होय.

जे पुण्यभाव-शुभभाव छे ते पण राग छे. पापभाव तो राग छे ज, एमां नवुं शुं छे? पण जे पुण्यभाव छे ते पण राग छे. तेने ज्ञानी पुरुषो हेय जाणीने छोडी दे छे. जुओ, माणस जे विष्टा करे छे तेने भूंड रुचिपूर्वक खाय छे. अरे! जेनी सामुं पण माणस ताके नहि तेने भूंड खाय छे! तेम ज्ञानीओ जे रागने हेय जाणी छोडी दे छे तेने अज्ञानीओ पोताना मानी तेना कर्ता थाय छे. भारे विचित्र वात! आवो ज्ञानी अने अज्ञानीना अंतरमां आसमान जमीननो फेर छे. जुओने! अहीं कहे छे-कर्मना उदयना विपाकथी उत्पन्न थयेलो आ रागरूप भाव छे, (ते) मारो स्वभाव नथी-एम ज्ञानी जाणे छे. अहाहा...! चिदानंद, नित्यानंद प्रभु आत्मानो राग स्वभाव केवो? माटे आ अपेक्षाए ज्ञानी रागने कर्मनुं कार्य जाणे छे.

परंतु कोई स्वयं कर्ता थईने राग करे अने नाखी दे कर्मने माथे तो तेने कहे छे के-ऊभो रहे, विकार ताराथी तुं करो छो तो ऊभो थाय छे. ते तारो ज दोष छे;