समयसार गाथा-१९९ ] [ ६९ कर्म कांई विकारने करतुं नथी, कर्म तो तेने अडतुंय नथी. त्रीजी गाथामां न आव्युं? के दरेक द्रव्य पोताना गुण-पर्यायने चुंबे छे तोपण परद्रव्यने चुंबतुं नथी. आ शुं कह्युं? के कर्मनो उदय रागने के जीवने चुंबतो नथी, अने राग कर्मना उदयने चुंबतो नथी.
तो रागने परनो (कर्मनो) केम कह्यो? कारण के राग जीवनो स्वभाव नथी. आनंदनो नाथ प्रभु आत्मानो त्रिकाळ ज्ञाता-द्रष्टा स्वभाव छे. तेनी अनंती निर्मळ शक्तिओमां रागने करे एवी कोई शक्ति - स्वभाव नथी. तेथी पर्यायमां जे राग थाय छे ते पर निमित्तना संगे थाय छे तो परनो छे एम जाणी ज्ञानी तेनाथी विमुख थाय छे. भाई! आवुं मनुष्यपणुं मळ्युं ने एमां आवी सत्य तत्त्वनी वात न समजाय तो अरेरे! हवे अवतार कयां थशे? बापु! भवसमुद्र अनंत छे. आ समज्या विना तुं एमां डूबीश, अने तो पछी अनंतकाळे पण अवसर नहि मळे, समजाणुं कांई...?
ज्ञानी कहे छे के हुं तो एक ज्ञायकस्वभावी छुं. मारा स्वभावमां राग नथी. अने रागने करे एवो कोई गुण-स्वभाव मारामां नथी. जो विकारने करे एवो कोई गुण मारामां होय तो सदाय विकार थया ज करे, कर्या ज करे, अने तो विकार कदीय टळे नहि; झीणी वात छे प्रभु! राग जो स्वभाव होय तो राग टळीने वीतराग कदापि न थाय. पण एम छे नहि. जुओने! केटलुं स्पष्ट कर्युं छे? के पुण्य, पाप, दया, दान, भक्ति इत्यादिनो राग मारो स्वभाव नथी; हुं तो आ-प्रत्यक्ष अनुभवगोचर-टंकोत्कीर्ण एक ज्ञायकभाव छुं एम समकिती जाणे छे, माने छे, अने रागने कर्मकृत जाणी तेनाथी विमुख थई जाय छे, तेने तजी दे छे.
प्रश्नः– विकार कर्मजन्य छे अने वळी जीवनो पण छे-एम बेय वात कुंदकुंदाचार्ये कही छे एम आप कहो छो, तो बन्नेमांथी कई वात बराबर छे?
उत्तरः– भाई! (अपेक्षाथी) बन्ने वात बराबर छे. श्रीमदे कह्युं छे के-
भाई! आ वात पहेलां हती ज नहि अने तुं अपेक्षा समजतो नथी तेथी समजवी कठण लागे छे. आ वात चालती न हती तेथी ते बहार आवतां लोकोने आश्चर्य थवा लाग्युं छे.
भाई! पर्यायमां जे विकार छे ते कर्मथी थयो छे एम बीलकुल नथी. पोताना ऊंधा पुरुषार्थथी जीव विकार करे छे अने सवळा पुरुषार्थ वडे तेने टाळे छे. जीव जे विकार करे छे ते पोताथी स्वतंत्र करे छे. तेने कोई कर्म के परने कारणे विकार थाय छे एम छे ज नहि.