Pravachan Ratnakar-Gujarati (Devanagari transliteration).

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समयसार गाथा-१९९ ] [ ७१ आवे ते आनंद अने वीतरागतानो आवे छे. जीवनुं त्रिकाळी क्षेत्र ज एवुं छे के तेमांथी आनंद अने वीतरागतानो पाक आवे. द्वेषनुं (वर्तमान) क्षेत्र एनाथी भिन्न छे. द्वेषना क्षेत्रनो जे अंश छे ते कर्मनुं कार्य छे एम जाणी ज्ञानी तेने काढी नाखे छे. बिचारा अज्ञानी सामायिक, प्रतिक्रमणादि क्रियाकांड करे अने माने के थई गयो धर्म, पण राग शुं? द्वेष शुं? स्वभाव शुं? निमित्त शुं? इत्यादि तत्त्व समजे नहि तेने धर्म कयांथी थाय?

प्रश्नः– निमित्तथी थाय छे एम शास्त्रमां कथन आवे छे. छतांय निमित्तथी न थाय एम आप केम कहो छो?

समाधानः– भाई! निमित्तथी थाय छे एम कथन तो आवे छे पण एनो अर्थ शुं? निमित्तथी थयुं छे एटले के निमित्तना लक्षे थयुं छे बस एटलुं ज. बाकी कांई एक द्रव्यथी अन्य द्रव्यमां कार्य थाय छे? (ना.) परद्रव्य तो स्वद्रव्यने अडतुंय नथी तो पछी एनाथी शुं थाय? (कांई ज नहि). अहीं तो एम कहेवुं छे के-आत्मस्वभावने (स्वभावना क्षेत्रने) द्वेष अडतोय नथी माटे द्वेष कर्मनुं कार्य छे एम जाणीने स्वभावनी द्रष्टि वडे ज्ञानी तेनी निर्जरा करी दे छे. वीतरागनो मार्ग बहु झीणो बापा!

हवे ‘राग’ पद बदलीने ‘मोह’ लेवुं एम कहे छे. अहीं समकितीनी वात छे. समकितीने मिथ्यात्वादि नथी पण तेने परमां सावधानीनो किंचित् मोहनो भाव आवे छे. परंतु ते, मोह कर्मनुं कार्य छे, मारो स्वभाव नथी, हुं तो शुद्ध चैतन्यमात्र छुं एम जाणतो थको मोहथी हठे छे.

तेवी रीते ‘क्रोध’ ‘पोग्गलकम्मं कोहो’–एम लेवुं. मतलब के क्रोध पुद्गलकर्मनुं कार्य छे केमके ते आत्मानो स्वभाव नथी. आत्मा तो सदाय वीतरागमूर्ति आनंदकंद प्रभु छे; तेमांथी क्रोध-विकार केम आवे? जुओ, क्रोध थाय छे तो पोताथी पोतानी पर्यायमां, परंतु जेनी पर्यायबुद्धि नष्ट थईने त्रिकाळी ज्ञायकस्वभावनी द्रष्टि प्रगट थई छे ते समकिती धर्मी जीव एम जाणे छे के क्रोध पुद्गलकर्मना उदयनो विपाक छे. धर्मात्मा जरा क्रोध थाय तेनो स्वामी नथी. तो क्रोधनो स्वामी कोण छे? तो कहे छे पुद्गल क्रोधनो स्वामी छे. ७३ मी गाथामां आवी गयुं छे के विकारनो स्वामी पुद्गल छे. अहाहा...! शुद्ध चैतन्यस्वभावना स्वामीपणे ज्यां प्रवर्त्यो त्यां एम भास्युं के क्रोधादि विकारनो स्वामी पुद्गल छे. आम जाणीने कोई विकार थवानो भय न राखे अने स्वच्छंदे प्रवर्ते तेने कहे छे के विकार ताराथी तारामां थतो अपराध छे. आ वात राखीने कह्युं के क्रोध पुद्गलनुं कार्य छे. समजाणुं कांई...?

पण आ बेमांथी कई वात साची मानवी?