Pravachan Ratnakar-Gujarati (Devanagari transliteration).

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८२ ] [ प्रवचन रत्नाकर भाग-७ आ प्रमाणे आत्माने राग तथा आस्रवथी भिन्न पाडीने ज्ञायकस्वभावने ग्रहवो- अनुभववो ते धर्म छे, अने आनुं नाम स्वभावनुं ग्रहण ने परभावनो त्याग छे.

ज्ञानी स्वभावना ग्रहण अने परभावना त्याग वडे पोतानुं वस्तुत्व विस्तारे छे. वस्तुत्व एटले शुं? वस्तु प्रभु आत्मा छे अने तेनो चिदानंदस्वभाव, ज्ञायकस्वभाव ते एनुं वस्तुत्व छे. ज्ञानी पोतानुं वस्तुत्व विस्तारे छे एटले पर्यायमां विज्ञानघनस्वभावने प्रसारे छे, द्रढ करे छे, स्थिर करे छे; अर्थात् वीतरागताने विस्तारे छे, वृद्धिगत करे छे. ल्यो, आ धर्म!

त्यारे कोई कहे-अमे मांड दुकान-वेपार छोडीने पूजा, भक्ति, उपवास करता होईए त्यां आवी वात आप करो के ते धर्म नहि तो अमारे कयां जवुं? शुं करवुं?

भाई! स्वभावनुं ग्रहण अने परभावनो त्याग ते धर्म छे. त्रिकाळी ज्ञायकस्वभावनुं ग्रहण-उपादेयपणुं अने रागादि परभावनो त्याग-बस आ ज करवानुं छे. बाकी बाह्य चीजनो त्याग तो अनादिथी छे ज. बहारनी चीज तो आत्मामां कयारेय छे ज नहि. माटे एना ग्रहण-त्यागनी अहीं कोई वात नथी. परंतु अंदर जे विकल्प उठे छे, वृत्ति जे शुभ-अशुभ उठे छे-के जे स्वभावथी विशुद्ध होवाथी परभावरूप छे-तेनो त्याग अने स्वभावनुं ग्रहण करवानी आ वात छे.

कहे छे-ज्ञानी स्वभावना ग्रहण अने परभावना त्याग वडे पोताना वस्तुत्वने विस्तारे छे. एटले शुं? के ज्ञानी पोताना ज्ञानानंदस्वभावी आत्माना आश्रये ज्ञान अने आनंदनी परिणतिने विशेष-विशेष पुष्ट करे छे. कोईने एम थाय के आना करतां तो भक्ति, उपवास अने जात्रा-ए बधुं खूब सहेलुं सट पडे. शुं धूळ सहेलुं पडे? ए तो बधो राग छे; ए धर्म कयां छे? भाई! सम्मेदशिखरनी के भगवाननी लाख जात्रा करे तोपण ए बधो राग छे, पुण्य छे, धर्म नहि. अने एने धर्म माने तो मिथ्यात्व छे. अहीं तो आ कहे छे के धर्मात्मा पोताना चैतन्यबिंबस्वरूप आत्माने ग्रहे छे, उपादेय करे छे अने रागनो त्याग करे छे अने ए विधि वडे पोताना वस्तुत्वनो-ज्ञानानंदस्वभावनो विस्तार करे छे. अज्ञानी तो पुण्यथी धर्म थशे एम मानी विकारने-बंधने ज विस्तारे छे. आवडो मोटो ज्ञानी ने अज्ञानीमां फेर छे.

शुं कह्युं? के समकिती पुण्य-पापना भावथी भगवान आत्मा जुदो छे एम विवेक करीने पोताना स्वभावने ग्रहे छे अने रागनो त्याग करे छे. आनाथी वस्तुत्वनी वीतरागी परिणति नीपजे छे, अर्थात् वस्तुत्वनो विस्तार थाय छे. पुण्यभावोनो विस्तार तो विकारनो-दोषनो विस्तार छे अने वीतरागी परिणति प्रगट करवी ते वस्तुत्वनो- ज्ञायकभावनो विस्तार छे. त्यारे कोईने थाय के आ तो एकान्त जेवुं छे. तेने कहीए छीए-सांभळ, भाई! परनो त्याग अने स्वनुं ग्रहण ते शुं एकान्त छे? ए तो सम्यक्