अनुसारिणी छे, वळी जीवादि पदार्थोना स्वरूपनुं ज्ञान जे प्रकारे थाय छे तेमां वाणी निमित्त छे; माटे वाणीनुं पूज्यपणुं पण छे. कळशटीकाकारे स्वतंत्र टीका करी छे, परंतु अजब मेळवाळी छे.
भाई! सर्वज्ञ परमेश्वर एटले शुं-एनी लोकोने खबर नथी. भगवान आत्मा सर्वज्ञ स्वरूपी ज छे. अहा! श्रीमदे कह्युं छे ने के सम्यक्दर्शन थतां (श्रद्धा अपेक्षाए) केवळज्ञान प्रगटयुं. अनादिथी पोते शक्तिए सर्वज्ञ होवा छतां हुं अल्पज्ञ छुं एम मानतो हतो. ते सम्यक्दर्शन प्रगट थतां हुं पूर्णानंद सर्वज्ञस्वभावी छुं एम श्रद्धामां आव्युं. माटे श्रद्धा अपेक्षाए केवळज्ञान वर्ते छे, एम श्रीमदे लीधुं छे. जे श्रद्धामां सर्वज्ञनी मान्यता न हती ए श्रद्धाए सर्वज्ञतत्त्वने प्रतीतिमां लीधुं-ए अपेक्षाए सर्वज्ञपणुं प्रगटयुं एम कहेवाय.
निजस्वरूपने सरस्वतीनी मूर्ति अवलोकन करे छे -एटले भगवान आत्मानुं जे पूर्णस्वरूप एनुं श्रुतज्ञान अने केवलज्ञान अवलोकन करे छे अने वाणी एने बतावे छे. आम शास्त्रने वंदन करतां त्रण लीधां छे. भावश्रुतज्ञाननी पर्याय त्रिकाळीनुं लक्ष करे छे ने? एम केवळज्ञाननी पर्याय त्रिकाळीने जाणे छे. परने जाणे छे ए वात अहीं न लीधी. त्रिकाळीने जाणतां बधुं जणाइ जाय छे. (पोतानी ज्ञानपर्याय पूर्ण प्रगट थई जाय छे). त्यां ज्ञाता, ज्ञेय अने ज्ञाननो भेद रहेतो नथी. कळशटीकामां आवे छे ने के ज्ञाता पोते, ज्ञान पोते अने पोते ज ज्ञेय; त्रणेय अभेद छे. एने अमारा नमस्कार छे एम कहे छे.
भावार्थः– अहीं सरस्वतीनी मूर्तिने आशीर्वचन रूप नमस्कार कर्यो छे. आशीर्वाद कहो कै आशीर्वचन. वाद एटले वचन. लोकमां आशीर्वाद आपुं छुं एम कहे छे ने? सरस्वतीनी मूर्ति नित्य प्रकाशो एम आशीर्वाद कह्यो छे. लौकिकमां जे सरस्वतीनी मूर्तिने मोर उपर बेसाडी तेनी पूजा करे छे ते यथार्थ स्वरूप नथी तेथी अहीं तेना यथार्थ स्वरूपनुं वर्णन कर्युं छे.
जे सम्यग्ज्ञान छे ए ज सरस्वतीनी सत्यार्थ मूर्ति छे. द्रव्यने अडीने जे ज्ञानपर्याय थाय ते सम्यग्ज्ञान, ते सरस्वतीनी साची मूर्ति छे. तेमां पण संपूर्ण ज्ञान तो केवळज्ञान छे जेमां सर्व पदार्थो प्रत्यक्षभासे छे. ते अनंतधर्मो सहित आत्मतत्त्वने - चैतन्यतत्त्वने प्रत्यक्ष देखे छे. आत्मानुं चैतन्यतत्त्व-चैतन्यपणुं सर्वधर्मोमां व्यापक छे. सर्व धर्मोमां अने गुणोमां व्यापेलुं एवुं महा चैतन्यस्वरूप ए आत्मतत्त्वनो असाधारण स्वभाव छे. श्रुतज्ञान ते आत्मतत्त्वने परोक्ष देखे छे. (वेदननी अपेक्षाए जो के श्रुतज्ञान आत्मतत्त्वने प्रत्यक्ष देखे छे) केवळज्ञान अने श्रुतज्ञान वच्चे आटलो फेर छे. तद्अनुसार शब्द पडयो छे ने? पोतामां जे श्रुतज्ञान थाय छे ते भगवानना ज्ञान अनुसार अने यथार्थ तत्त्वने अनुसरीने छे. तेथी ते पण सरस्वतीनी सत्यार्थ मूर्ति छे.