Pravachan Ratnakar-Gujarati (Devanagari transliteration).

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भाग-१ ] २३

द्रव्यश्रुत वचनरूप छे, ते पण सरस्वतीनी साची मूर्ति छे. निमित्त छे ने? वचनो द्वारा अनंत धर्मोवाळा आत्माने बतावे छे. आ रीते सर्व पदार्थोनां तत्त्वने जणावनारी ज्ञानरूप तथा वचनरूप अनेकांतमयी सरस्वतीनी मूर्ति छे. तेथी सरस्वतीनां नाम वाणी, भारती, शारदा, वाग्देवी ईत्यादि घणां कहेवामां आवे छे. आ सरस्वतीनी मूर्ति नित्य, अनित्य वगेरे अनंतधर्मोने स्यात् पदथी एटले के कथंचित्-कोई अपेक्षाए एक धर्मोमां अविरोधपणे साधे छे तेथी ते सत्यार्थ छे. केटलाक अन्यवादीओ सरस्वतीनी मूर्तिने बीजी रीते स्थापे छे पण ते पदार्थने सत्यार्थ कहेनारी नथी; माटे उपरोक्त सत्यार्थ बतावनारी ज्ञान-वचनरूप सरस्वती ज यथार्थ छे एम जाणवुं.

हवे कोई प्रश्न करे के आत्माने अनंतधर्मवाळो कह्यो छे तो तेमां अनंत धर्मो कया कया छे? उत्तरमां पहेलां सामान्य वस्तुनी (छये द्रव्योनी) वात करी छे अने छेल्ले आत्मानी वात लीधी छे. वस्तुमां सत्पणुं एटले होवापणुं छे, वस्तुपणुं छे, प्रमेयपणुं छे, प्रदेशपणुं छे. चेतनपणुं छे, अचेतनपणुं, मूर्तिकपणुं छे. जडनी अपेक्षाए अचेतनपणुं अने मूर्तिकपणुं कह्युं छे. वळी अमूर्तिकपणुं छे, -ए चेतन अचेतन बन्नेमां छे, ईत्यादि धर्म तो गुण छे. भाषामां धर्म एम कह्युं छे पण आ धर्म एटले गुणनी वात छे. गुणोमां समय-समयवर्ती परिणमन थवुं ते पर्याय छे. दरेक गुणमां क्षणे क्षणे पर्याय थाय छे. एम गुणनी समयवर्ती त्रणेकाळ पर्यायो होय छे, जे अनंत छे.

हवे धर्मनी वात करे छे. धर्म एटले धारी राखेली योग्यता; गुण नहीं. (गुणने धर्म कहेवाय, परंतु धर्मने गुण न कहेवाय.) गुण होय तेने पर्याय होय. वस्तुमां एकपणुं ए गुण नथी, परंतु धर्मरूप लायकात छे एवी रीते अनेकपणुं, नित्यपणुं, अनित्यपणुं, भेदपणुं, अभेदपणुं, शुद्धपणुं, अशुद्धपणुं आदि अनेक धर्म छे. ते सामान्य धर्मो तो वचनगोचर-वचनगम्य छे. पण बीजा विशेषरूप धर्मो जेओ वचनना विषय नथी एवा पण अनंत धर्मो छे- जे ज्ञानगम्य छे, एटले ज्ञानमां जणाय एवा छे पण वचन द्वारा कथनमां आवी शके नहीं. अहीं सुधी सामान्य वात करी.

शिष्यनो प्रश्न तो आत्मानो हतो. आत्मामां अनंत धर्मो कह्या छे तो ते कया कया छे? अहीं सुधी तो वस्तुनी (दरेक पदार्थनी) सामान्य स्थिति बतावी. हवे आत्मा पण एक वस्तु छे, तेथी तेमां पण पोताना अनंत धर्मो छे. आत्माना अनंतधर्मोमां चेतनपणुं असाधारण धर्म छे; केमके बीजा अचेतन द्रव्योमां ते गुण नथी, अने आत्मामां पण स्वपरने जाणवानी ताकातवाळो बीजो एकेय गुण नथी. वळी सजातीय जीव द्रव्यो अनंत छे.