२४ [ समयसार प्रवचन तेमनामां जो के चेतनपणुं छे, तो पण सौनुं चेतनपणुं निज निज स्वरूपे जुदुं जुदुं छे; केमके दरेक द्रव्यने प्रदेशभेद होवाथी दरेक द्रव्यना प्रदेशो-क्षेत्र भिन्न छे; कोईनुं कोईमां भळतुं नथी. आ चेतनपणुं पोताना अनंतधर्मोमां व्यापक छे. जोयुं? तत्त्व कह्युं हतुं ने? अनंत धर्मो छे, तेमां चैतन्यने मूळतत्त्व कह्युं छे. केमके अनंतधर्मोमां चेतनपणुं व्यापक छे. तेने आ सरस्वतीनी मूर्ति देखे छे. श्रुतज्ञान अने केवळज्ञान देखे छे अने वाणी देखाडे छे. आ रीते एनाथी सर्व प्राणीओनुं कल्याण थाय छे. माटे ‘सदा प्रकाशरूप रहो’ एवुं आशीर्वादरूप वचन कह्युं छे.
प्रथम कळशमां मांगळिक करतां सर्वज्ञपणुं सिद्ध कर्युं. खरेखर तो जीवनो सर्वज्ञ स्वभाव छे. ए तेनुं स्वरूप छे. सर्वज्ञपणुं पोतानी अनुभूतिनी क्रियाथी प्रगट थाय छे. चैतन्यतत्त्व-ज्ञायकभाव पोताना बधा धर्मोमां व्यापक छे. प्रथम कळशमां सर्वज्ञस्वरूप अने प्रगट सर्वज्ञपणुं सिद्ध कर्युं. आत्मा सर्वज्ञस्वभाव कहेतां पोते जाणनार-देखनार स्वभाव छे, एटले अकर्तापणुं छे. क्रमबद्धपर्यायनो निर्णय अकर्तापणाना निर्णयमां थाय छे. द्रव्यनी पर्याय क्रमसर थाय छे. एमां आत्मानुं कर्तृत्व नथी. क्रमसर थाय एमां कर्तृत्व शुं? क्रमबद्धपर्यायमां अकर्तापणुं अथवा अस्तिथी ज्ञातापणुं ज सिद्ध कर्युं छे. ज्यां पर वस्तुनी के पोतानी रागादि पर्यायनुं पण करवुं नथी त्यां अकर्तापणुं अर्थात् ज्ञातापणुं छे. ज्ञातापणानो अनुभव थवो ए सम्यक्दर्शन छे. बीजा कळशमां सर्वज्ञनी वाणीने नमस्कार कर्यो छे. सर्वज्ञनी वाणी पण सर्वज्ञपणुं सिद्ध करे छे, परनुं अकर्तापणुं बतावी ज्ञातापणुं सिद्ध करे छे.