Pravachan Ratnakar-Gujarati (Devanagari transliteration). Kalash: 3.

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समयसार कळश त्रीजा

हवे कळश त्रीजामां पण ‘चिन्मात्र मूर्ति’ कहीने आत्मा सर्वज्ञस्वभावी छे एम सिद्ध कर्युं छे. आ कळशमां टीकाकार आचार्य (अमृतचंद्राचार्यदेव) आ ग्रंथनुं व्याख्यान करवाना फळने चाहतां प्रतिज्ञा करे छेः-

ः कळशः

परपरिणतिहेतोर्मोहनाम्नोऽनुभावा–
दविरतमनुभाव्यव्याप्तिकल्माषितायाः।
मम परमविशुद्धिः शुद्धचिन्मात्रमूर्ते–
र्भवतु
समयसारव्याख्यायैवानुभूतेः।। ३।।

ः कळश उपरनुं प्रवचनः

श्रीमान् अमृतचंद्राचार्य कहे छे के समयसार एटले शुद्धात्मा अने तेनो वाचक समयसार ग्रंथ-शब्दो तेनी व्याख्या एटले टीकाथी ज -‘व्याख्ययैव’ शब्द छे! ने मारी अनुभूति एटले अनुभवनरूप परिणतिनी परम विशुद्धि थाओ. जुओ ‘एव’ शब्द पडयो छे. एटले कथनी वा टीकाथी ज मारी अनुभवनरूप परिणतिनी परम विशुद्धि थाओ. एक बाजु एम कहेवुं के टीका करवानो भाव तो विकल्प छे, कारण के टीका ए शब्दो छे तेथी ते परद्रव्य छे. पण एम कहीने आचार्य एम कहेवा मागे छे के- हुं मुनि छुं, त्रण कषायोनो तो अभाव छे, परंतु पूर्ण वीतरागता प्रगट नथी. एटले विकल्प छे एम सिद्ध करे छे.

हवे कहे छे के - ‘टीकाथी ज’ एनो अर्थ एम छे के - टीकाना काळमां टीका करवामां मारुं वलण तो सर्वज्ञ स्वभावने पर्यायमां सिद्ध-प्रगट करवानुं छे, अने मारुं ध्येय ध्रुव छे; ध्रुव सर्वज्ञ स्वरूपी छे. प्रगट करवा योग्य पर्याय सर्वज्ञता छे तेथी टीकाना काळमां भले टीका थई त्यारे केवळज्ञान प्रगट थयुं नथी, पण निर्मळता थई छे अने निर्मळता थई छे अने निर्मळता विशेष थशे, केमके मारुं ध्येय द्रव्य छे. त्रीजुं पद छे ने? ‘हुं तो चिन्मात्र मूर्ति छुं.’ एटले शुद्ध चिन्मात्र, सर्वज्ञस्वभाव-मात्र मारुं स्वरूप छे. द्रव्यदष्टिए