मंगलं कुंदकुंदार्यो जैन धर्मोऽस्तु मंगलम्।।
प्रारंभिकः
परम देवाधिदेव जिनेश्वरदेवश्री वर्धमानस्वामी, गणधर देवश्री गौतमस्वामी तथा आचार्य भगवान श्री कुंदकुंददेवने अत्यंत भक्ति सहित. नमस्कार.
ए तो सुविदित छे के अंतिम तीर्थंकर भगवान श्री वर्धमानस्वामीनी दिव्यध्वनिनो सार आचार्य श्री कुंदकुंददेव प्रणित समयसार, प्रवचनसार, नियमसार, पंचास्तिकाय आदि परमागमोमां ठांसी ठांसीने भरेलो छे. भव्यजीवोना सद्भाग्ये आजे पण आ परमागमो श्री अमृतचंद्राचार्य आदि महान दिग्गज आचार्योनी टीका सहित उपलब्ध छे. वळी विशेष महाभाग्यनी वात तो ए छे के सांप्रतकाळमां आ परमागमोनां गूढरहस्यो समजवानी जीवोनी योग्यता मंदतर थती जाय छे. तेवा समयमां जैनशासनना नभोमंडळमां एक महाप्रतापी पुरुष पूज्य गुरुदेवश्री कानजीस्वामी-जेमने युगपुरुष कही शकाय, तेवा सत्पुरुषनो योग थयो छे. पूज्य गुरुदेवश्री कानजीस्वामी आजे छेल्लां ४प वर्षोथी उपरोक्त परमागमोमां प्रतिपादित जैनधर्मना मूळ सिद्धांतोने अतिस्पष्ट, शीतळ अने परम शांतिप्रदायक प्रवचनगंगा द्वारा रेलावी रह्या छे. आ पवित्र प्रवचनगंगामां अवगाहन पामीने अनेक भव्य आत्माओने जैनधर्मनी प्राप्ति थई छे, तेम ज अनेक जीवो जैनधर्मना गंभीर रहस्योने समजता थया छे अने मार्गानुसारी बन्या छे. आ रीते पूज्य गुरुदेवनो जैन समाज उपर अनुपम, अलौकिक अनंत उपकार छे. तेओश्रीना आ उपकारनो अहोभाव नीचेनी पंक्तिओ द्वारा प्रत्येक मुमुक्षुओ व्यक्त करे छे.
पुण्यप्रसंगनुं सौभाग्यः
संवत २०३४नी दीपावलि प्रसंगे मुंबई मुमुक्षु मंडळना सभ्यो पूज्य गुरुदेवश्री पासे ९०मी जन्मजयंती मुंबईमां उजवाय ते माटे अनुमति प्राप्त करवा विनंती करवा