Pravachan Ratnakar-Gujarati (Devanagari transliteration).

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माटे सोनगढ आवेला त्यारे केटलाक सभ्योने पोताना स्वाध्यायना लाभना हेतुथी पूज्य गुरुदेवश्रीना श्री समयसार परमागम उपर अढारमीवार थयेल सातिशय प्रवचनो (सने १९७प, १९७६, १९७७मां) प्रसिद्ध करवानो मंगळ विचार आव्यो. आ विचार मंडळना सौ सभ्योए प्रमोदथी आवकार्यो अने प्रसिद्ध अध्यात्मप्रवक्ता, धर्मानुरागी मुरब्बी श्री लालचंदभाईनी पण आ सुंदर कार्य माटे मंडळने प्रोत्साहित करती शुभप्रेरणा मळी. आ रीते मुंबईना मुमुक्षुमंडळने पूज्य गुरुदेवश्रीना अढारमी वारना परमागम श्री समयसार उपर थयेला अनुभवरसमंडित परमकल्याणकारी, आत्महितसाधक प्रवचनो प्रकाशित करवाना आ पुनित प्रसंगनुं सौभाग्य प्राप्त थयुं छे ते अत्यंत हर्ष अने उल्लासनुं कारण छेे.

प्रकाशननो हेतुः

आ प्रवचनोना प्रकाशननो मूळ हेतु तो निजस्वाध्यायनो लाभ थाय ते ज छे. तद् उपरांत सौ जिज्ञासु भाई-बहेनोने पूज्य गुरुदेवश्रीनां समयसार उपरनां सळंग सर्व प्रवचनो साक्षात् सांभळवानो लाभ प्राप्त न थई शक्यो होय ते संभवित छे. तेथी आ गं्रथमाळामां कमशः आदिथी अंत सुधीना पूरां प्रवचनोने समजवानो कायमी अने सर्वकालिक लाभ मळी रहे ते हेतुथी पूज्य गुरुदेवश्रीनी अध्यात्मरसझरती अमृतमयी वाणीना स्वाध्याय द्वारा निरंतर मुमुक्षु जीवोने आत्महितथी प्रेरणा मळती रहेशे. तेवो आशय पण आ प्रकाशननुं प्रेरकबळ छे.

वळी आ पंचमकाळना प्रवाहमां क्रमशः जीवोनो क्षयोपशम मंदतर थतो जाय छे तेथी परमागममां रहेला सूक्ष्म अने गंभीर रहस्यो स्वयं समजवा घणा ज कठिन छे. आ परिस्थितिमां पूज्य गुरुदेवश्रीए सादी अने सरळ भाषामां स्पष्ट करेलां प्रवचनो लेखबद्ध करीने पुस्तकारूढ करवामां आवे तो भावी पेढीने पण श्री समयसार परमागमनां अतिगूढ रहस्यो समजवामां सरळतापूर्वक सहायरूप बनी रहेशे अने ते रीते जिनोक्त तत्त्वज्ञान अने तेनी स्वाध्याय परंपरा तेना यथार्थ स्वरूपमां जळवाई रहेशे तेम ज ते द्वारा अनेक भव्यजीवोने पोतानुं आत्मकल्याण साधवामां महान प्रेरणा प्राप्त थशे तेवा विचारना बळे पूज्य गुरुदेवश्रीना श्री समयसार उपरांत बीजा पण अनेक परमागमो उपर थयेल प्रवचनो प्रकाशित करवानी भावना छे एने ते भावनावश आ ट्रस्टनी रचना थई छे. उपरोक्त हेतुथी आ ट्रस्टनो जन्म थयो छे अने पूज्य गुरुदेवनां हजारो प्रवचनो प्रसिद्ध करवानो ज मुख्य उद्देश आ ट्रस्टमां राखवामां आवेल छे.

आ प्रसंगे स्व. श्री सोगानीजीनुं एक वचन साकार थशे तेवुं भासे छे. तेमणे कह्युं छे के पूज्य गुरुदेवश्रीथी धर्मनो जे आ पायो नंखायो छे ते पंचमकाळना अंत