१०४ ] [ प्रवचन रत्नाकर भाग-२ अने एनो पण क्षणे क्षणे क्षय थतो जाय छे. भाई! त्यां तो एम कहे छे के भगवान तो पोताना पुरुषार्थथी केवळज्ञान पाम्यां छे. एने जे पुण्य बाकी रह्युं छे ते पुण्यने लईने आसन, विहार थाय अने वाणी नीकळे ए बधी उद्रयनी जे क्रिया छे ते क्षणे क्षणे नाश पामे छे तेथी तेने क्षायिकी कही छे एम त्यां वात आवे छे. ‘पुण्णफला अरहंता’ एटले पुण्यना फळमां अरिहंतपद मळे छे एम छे ज नहि. आ आवा ऊंधा अर्थ करे, पण शुं थाय?
शिष्य आ रीते अनेक प्रकारे आत्मा अने शरीर एक छे एवी ऊंधी मान्यता शास्त्रमांथी काढे छे. एने आचार्य भगवान कहे छे के एम नथी; तुं नयविभागने जाणतो नथी. तुं शास्त्रोना व्यवहारनयना कथनोने समजतो नथी. ते नयविभाग आ प्रमाणे छे. एम आगळनी गाथामां कहेशे.