१०६ ] [ प्रवचन रत्नाकर भाग-२
अप्रतिबुद्धे तीर्थंकर-आचार्योनी स्तुति उपरथी एम कह्युं के-अमारो तो एकांत ए ज निश्चय छे के आत्मा छे ते ज शरीर छे, पुद्गल द्रव्य छे. तेने (अप्रतिबुद्धने) आचार्य कहे छे के-एम नथी. तुं नयविभागने जाणतो नथी. ते नयविभाग आ प्रमाणे छे एम गाथामां कहे छेः-
जेम आ लोकमां सुवर्ण अने चांदीने गाळी एक करवाथी एक पिंडनो व्यवहार थाय छे तेम आत्माने अने शरीरने परस्पर एकक्षेत्रे रहेवानी अवस्था होवाथी एकपणानो व्यवहार छे.’ जुओ, सोनुं अने चांदीने गाळी एक करीने एने धोळुं सोनुं एम कहेवामां आवे छे. पण धोळुं तो रूपु (चांदी) छे अने सोनुं तो पीळुं छे. बन्ने जुदां जुदां छे. तेम चैतन्य लक्षणवान आत्मा छे अने अचेतन लक्षणवान (जड) शरीर छे. एम बन्ने जुदां जुदां छे.
कर्मनां रजकणो कर्मनी पर्यायने करे पण आत्मा एने न करे तथा कर्मनी पर्याय आत्माने राग न करावे, अहाहा! स्वतंत्र परमाणु पोताना द्रव्य, क्षेत्र, काळ, भावमां पोताना अस्तित्वथी रहेल छे. ए परना द्रव्य, क्षेत्र, काळ, भावमां प्रवेश कर्या विना एने (परने) करे शी रीते? एथी कहे छे के आत्मा अने शरीर एक छे ए तो व्यवहारनुं कथन मात्र छे. आम व्यवहारमात्रथी ज आत्मा अने शरीरनुं एकपणुं कहेवामां आवे छे. बन्ने एक क्षेत्रमां रहेलां छे ए अपेक्षाए असद्भूत व्यवहारनयथी एक छे एम कहे छे, परंतु निश्चयथी एकपणुं नथी.
कारण के निश्चयनयथी विचारवामां आवे तो जेम पीळापणुं आदि, अने सफेदपणुं आदि जेमनो स्वभाव छे एवां सुवर्ण अने चांदीने अत्यंत भिन्नपणुं होवाथी एकपदार्थपणानी असिद्धि छे.’ जुओ, सोनुं अने चांदीनो भिन्नभिन्न स्वभाव छे तेथी निश्चयथी सोनुं अने चांदी एक नथी. अरे! सोनाना एक एक रजकणने बीजा रजकणनो संबंध नथी. परमाणु एकलो होय तोपण पोताना स्वचतुष्टयमां (द्रव्य, क्षेत्र, काळ, भावमां) छे अने स्कंधमां होय तोपण पोताना स्वचतुष्टयमां छे. प्रवचनसार गाथा ८७मां कह्युं छे के स्कंधमां पण जे अनंत रजकणो छे ते दरेके दरेक रजकण स्वतंत्र छे, एके एक रजकण पोताना स्वचतुष्टयमां छे, पण अन्य रजकण साथे अभेद नथी. अनंत रजकणो अनंत तत्त्व छे. ते प्रत्येक स्वपणे रहे अने परपणे न रहे तो अनंत अनंतपणे रही शके. अनंतनी अनंततानुं अस्तित्व सिद्ध करवा जाय तो प्रत्येक पोतामां छे अने परमां नथी एम प्रत्येकनी भिन्नभिन्न स्वसत्ता (स्वरूप अस्तित्व) सिद्ध थई जाय छे. भाई! परथी आमां थाय अने आनाथी परमां थाय एम माने तो अनंतनी भिन्नभिन्न सत्ता सिद्ध नहि थाय.