Pravachan Ratnakar-Gujarati (Devanagari transliteration).

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गाथा २७ ] [ १०७

एक रजकणनुं जे क्षेत्रांतर थाय ए रजकणनी पोतानी क्रियावतीशक्तिने कारणे पोताना अस्तित्वथी थाय छे, पण बीजा रजकणने कारणे नहि अने आत्माना कारणे पण नहि. आवुं तत्त्व छे. वस्तु परथी भेदरूप (भिन्न) छे ए अहीं कहे छे. सुवर्ण अने चांदीने अत्यंत भिन्नपणुं होवाथी तेमने एकपदार्थपणानी असिद्धि छे. तेथी अनेकपणुं छे. जोयुं, अनंत अनंतपणे छे माटे एकबीजा साथे कांई संबंध नथी. सोनुं अने चांदी बे छे ने? ए बन्ने पोतपोतापणे छे. बे एक नथी थयां माटे अनेक छे. भाई! एक स्कंधमां अनेक रजकणो छे तेमां दरेक रजकण तथा एक निगोदना शरीरमां अनंत जीवो छे तेमां प्रत्येक जीव पोताना स्वचतुष्टय (द्रव्य, क्षेत्र, काळ, भाव)ने छोडीने बीजाना चतुष्टयमां जता नथी. बधाय अनंतपणे रह्या छे, एकपणे थया नथी. आवो छे, भाई! वीतरागमार्ग बहु सूक्ष्म छे.

आ तो एम माने शरीरथी दया पळे, शरीरथी संयम थाय, शरीरथी उपवास थाय, आत्मा होय तो शरीरनी क्रिया थाय, शरीरनुं दुःख आत्माने वेदाय इत्यादि-माटे शरीर अने आत्मा एक छे. भाई! आ तारी मान्यता मूढनी छे. आ बधी क्रियामां राग मंद होय, शुभक्रिया थई होय तो पुण्य थाय पण ए शरीरनी क्रियाथी अने आहार छोडवाथी के शुभक्रियाथी धर्म थयो माने तो ए मिथ्यात्वभाव छे. भाई! आत्मामां परवस्तुना ग्रहण-त्यागनी शक्ति ज नथी. आत्मामां त्याग-उपादान शून्यत्व शक्ति छे. एटले परनो त्याग अने परनुं ग्रहण आत्मा करी शके ज नहि. तो पछी परद्रव्यने शी रीते ते ग्रहे अने छोडे? (अन्यत्र) संप्रदायमां तो आ वात ज मळती नथी.

एक आत्मा बीजा आत्माना चतुष्टयथी भिन्न छे. तेम एक रजकण बीजा रजकणना चतुष्टयथी भिन्न छे. सप्तभंगीमां पहेलो भंग एम छे के-वस्तु स्वद्रव्य-क्षेत्र- काळ-भावथी अस्ति छे अने परद्रव्य-क्षेत्र-काळ-भावथी नास्ति छे.

प्रश्नः– पण व्यवहारथी तो बीजानुं करे ने?

उत्तरः– धूळे य न करे. ए तो बोलाय. निश्चयथी के व्यवहारथी कोई रीते परनुं करी शके नहि. जेम अमारो देश, अमारुं गाम एम बोलाय पण एथी गाम अने देश एना थई गया? (सर्वविशुद्धज्ञान अधिकार, समयसार गाथा ३२प मां आ वात आवे छे.) श्रीमद् एम बोलता के अमारो कोट, अमारी टोपी, अमारुं घर इत्यादि. लोको आ समजी शक्ता नहि. तेमने एम थाय के आ शुं बोले छे? अ-एटले नहि. अमारो एटले मारो नहि एवो भाव एनी पाछळ हतो. पण समजवानी कोने पडी छे? आम ने आम आ आत्मा अनंतकाळथी परने पोतानुं मानीने, पोताना स्वरूपने भूली रखडे छे. श्रीमद कहे छे के “तारा दोषथी तने रखडवुं थयुं छे. तारो दोष एटलो के परने